दिल्ली की जामा मस्जिद का इतिहास (History of Jama Masjid of Delhi)
















कहां पर है


दिल्ली की जामा मस्जिद भारत की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक में है यह मात्र लाल किले से 500 मीटर की दूरी पर है।

कब और किसने इसका निर्माण करवाया

सम्राट शाहजहां ने इसका निर्माण 6 अक्टूबर 1650 में शुरू करवाया था और 24 जुलाई 1656 को यह बनकर तैयार हुआ था इसको बनाने में 6 वर्ष लग गए थे।

इसकी आकृति (आकार)

यह मस्जिद 65 मीटर लंबी और 33 मीटर चौड़ी है इसके आंगन में 100 वर्ग मीटर का स्थान है इसको जमीन से 5 फुट ऊंचे मंच पर बनाया गया है इसमें चार प्रवेश द्वार है तथा चार स्तंभ व  40मी ऊची 2 मीनारें हैं। यह  लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बनी हुई है। मुख्य प्रार्थना कक्ष में ऊंचे ऊंचे मेहराब सजाए गए हैं  जो 260 खंभों पर है। इनके साथ 15 संगमरमर के गुंबद विभिन्न ऊंचाइयों पर हैं। सफेद संगमरमर के बने तीन गुंबद में काले रंग की पट्टियाँ  के साथ शिल्पकारी  की गई यह प्राचीन स्मारक 500 शिल्पकार द्वारा बनाया गया है इसमें एक बार में 25000 व्यक्ति बैठ कर नमाज अदा कर सकते हैं।

इसको बनाने में बादशाह शाहजहां ने जामा मस्जिद के निर्माण में 10 करोड रुपए (वर्तमान मूल्य) की लागत से कराया गया था। और इसको आगरे  में स्थित मस्जिद की तर्ज पर बनाया गया था इसमें वस्तु कला शैली के अंदर हिंदू और मुस्लिम दोनों तत्वों का समावेश है।

इसको क्यों बनाया गया इसको बनाने का विचार कैसे आया

शाहजहां का एक सपना था की एक मस्जिद ऐसी हो जिसे देखकर अपने मन में खुदा की याद करने का भाग जागे यही नहीं शाहजहां चाहते थे कि खुदा का दरबार उसके दरबार से ऊंचा हो इतना ऊंचा कि खुदा का घर  उसके तख्त ताज से ऊपर हो। इसके लिए उनको लाल किले के सामने किसी स्थान की तलाश थी और उनकी तलाश पूरी लाल किले के ठीक सामने स्थित भोजला नाम की पहाड़ी पर एक छोटी सी पहाड़ी को मस्जिद बनाने के लिए चुना गया यह लाल किला राजा के दरबार के ठीक सामने था।
जिस दौर मे मस्जिद का निर्माण हुआ उस दौर में मुगल वास्तुकला अपने अंतिम पड़ाव में थी यही वह समय था जब इस्लामी वास्तुकला के कई भारतीय भाषाओं में देखने को मिली क्योंकि शाहजहां ने एक सपना देखा था कि वह अपने शासनकाल में दुनिया का सबसे खूबसूरत शहर बनाए इसके लिए शाहजहां ने शाहजहांबाद बसाया जो पुरानी दिल्ली के रूप में जाना जाता है इसी शहर में जामा मस्जिद तैयार की गई थी जो मुगलिया कला की समृद्धि का बड़ा उदाहरण बनी।
 
माना जाता है कि  जामा मस्जिद शाहजहां की आखिरी अतिरिक्त खर्चीली वास्तुशिल्प  थी । यह अंतिम स्मारक थी, इसके बाद उन्होंने किसी कलात्मक इमारत का निर्माण नहीं करवाया।

खास मस्जिद के लिए खास इमाम

मस्जिद जब तैयार हुई तो इसके इमाम को लेकर भी काफी ज्यादा जद्दोजहद हुई बादशाह चाहते थे कि इस मस्जिद के इमाम भी खास हो काफी समय तमाम की तलाश की गई जो उज्बेकिस्तान के छोटे से शहर से बुखारा में जाकर खत्म हुई इमाम के लिए यहां से एक नाम सामने आए वह  सय्यद अब्दुल गफूर शाह का।

सैयद अब्दुल गफूर साकी इमामी में 24 जुलाई 1656 को जामा मस्जिद में  पहली बार नमाज अदा की गई इस दिन दिल्ली के  अवाम के  साथ शाहजहाँ और उनके सभी दरबारियों ने पहली बार जामा मस्जिद में नमाज अदा की।

मुगल बादशाह ने इमाम अब्दुल गफूर को इमाम ए सल्तनत की पदवी दी इसके बाद उनका खानदान ही इस मस्जिद की इमामत करता चला आ रहा है जो कि सैयद अब्दुल गफूर साहब, बुखारा से थे इसलिए उनके नाम के साथ बुखारी लगने लगे, आज व्यवस्था जारी है उस दिन के बाद से आज तक दिल्ली की जामा मस्जिद में इमामत का सिलसिला बुखारी खानदान के नाम हो गया सैयद अब्दुल गफूर के बाद सैयद अब्दुल शकूर इमाम बन इसके बाद सय्यद अब्दुल रहीम, सय्यद अब्दुल गफूर ,सैयद अब्दुल रहमान , सैयद अब्दुल करीम, सैयद अमीर जीवन शाह, सैयद अमीर अहमद अली, सैयद मोहम्मद शाह, सैयद अहमद बुखारी इमाम बने।

आने वाले इस्लाम धर्मावलंबी  अपने आप इबादद में लग जाते है क्योकि मस्जिद को कुरान के पवित्र पुस्तक की जटिल आकृतियों और काव्य रचनाओं को अति बारीकियों  के साथ सजाया गया है इस मस्जिद में कई अवशेष है जिनमें एक कुरान की प्राचीन पड़ती है

यह मस्जिद के उतरी दरवाजे पर रखी गई है साथ ही नबी के दाढ़ी वाले बाल, सैंडल, उनके पैरों के निशान संगमरमर के खंडों में प्रत्यारोपित हैं चारों तरफ भारत का मूल है जिसका सपना शाहजहां ने देखा था।

आज भी यहाँ  जुम्मा, अलविदा, ईद, ईद-उल, अहा, में यहा पर करीब 25000 से अधिक लोग नमाज अदा करते हैं रमजान के महीने में है बहुत भीड़ होती है मस्जिद के मेंबरों, मेेेहराब, सेहन गुंबद सब आलीशान है।


यह मस्जिद भव्यता की जीती जागती निशानियां की मीनार व दरो दीवार तो मुगलिया  और नक्काशी इतनी खूबसूरत है कि इस पर से नजर नहीं हटती। मस्जिद मे चार  दरवाजा है जो इसकी शान को और भी दोगुना करते हैं।

दिल्ली का आन बान और शान

मस्जिद चूंकि  ऊँची  पहाड़ी पर है इसलिए दूर से दिखाई देती है यह पूरी संरचना  लगभग 5 फुट ऊंचे स्थान पर है  ताकी इसका का भव्य प्रवेश द्वार आसपास के सभी इलाकों से दिखाई दे सके। सीढियों  की चौड़ाई उत्तर और  दक्षिण में काफी अधिक है।

चौड़ी सीढियो और मेहराबदार प्रवेश  द्वार इस लोकप्रिय मस्जिद की विशेषता है जामा मस्जिद का प्रार्थना ग्रह बहुत ही सुंदर है इसमें 11 मेहराब है जिसमें बीच वाला मेहर और अन्य से कुछ बड़ा है मस्जिद का मुख्य प्रवेश लाल किले के सामने से पूरी तरह से है 

क्योंकि यह पहले  भी सम्राटों द्वारा उपयोग में लाया जाता था यही कारण है कि जामा मस्जिद का पूर्वी द्वारा शुक्रवार को ही खुलता है

इसका  खुला रहने  का समय

अगर आप दिल्ली जाते तो इस ऐतिहासिक  जामा मस्जिद की शैर करना आपको आनंद का अनुभव दे सकता है प्रात 7:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे और 1:30 बजे से सांय 6:30 बजे तक खुलती है मस्जिद में आप किसी भी दिन जा सकते लेकिन इबादत  के दौरान पर्यटकों का प्रवेश निषेध है । मस्जिद में जाने के लिए आपको किसी भी प्रकार का शुल्क का भुगतान नहीं करना होगा परन्तु  फोटोग्राफी करने के लिए भुगतान करना पड़ता है।

कैसे पहुंचे जामा मस्जिद

जामा मस्जिद जाने के लिए मेट्रो का रास्ता भी ले सकते हैं यहां का सबसे नजदीकी मेट्रो स्टेशन येलो लाइन पर स्थित चावड़ी बाजार मेट्रो तक वहां से आप या तो रिक्शा पर ऑटो नहीं तो पैदल ही मस्जिद तक जा सकते चावड़ी बाजार के अलावा चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन पर बिता सकते हैं पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से जामुन की दूरी जाते नहीं वहां से पैदल भी जाया जा सकता आईएसबीटी कश्मीरी गेट से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है शक्ल से झांसी की दूरी 4 किलोमीटर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कितनी दूरी है दिल्ली से


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