हौस खास का मकबरा व अन्य मकबरे(Haus Khas Tomb and Other Tombs)

क्या आप जानते हैं?🤔 दिल्ली के हौस खास मकबरा का इतिहास क्या है?😇🤔 क्या आपको पता है इसका निर्माण किसने करवाया था??🤔😇 क्या आपको पता है कि हौज खास का अर्थ एक "तालाब" या  "टैंक" है 🙄😳😇। दिल्ली का हौज खास मकबरा  कहां पर स्थित है🤔🤔??? इन सवालों के जवाब जानने के लिए इसको पूरा पढ़े दिल्ली के हौज खास का इतिहास जानिए।






                                              हौस खास का मकबरा


यह  मकबरा कहां पर है

दिल्ली का हौस खास मकबरा भारत की राजधानी दिल्ली के दक्षिणी जिले के हौज खास में  हौज खास गांव में  है।

इस मकबरे का इतिहास

हौज खास का किला भारत की ऐतिहासिक स्थलो व स्मारको  में से एक हैं। दिल्ली के हौज खास का इतिहास काफी पुराना है जो कि मध्यकालीन युग के समय का है ।इस किले के निर्माण का श्रेय दो शासकों को जाता है जिनमें से इस किले  का निर्माण पहला शासक बादशाह अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किया जाता है और दूसरे शासक फिरोजशाह तुगलक द्वारा इसको पुन: निर्माण  करके एक नए रूप में व आकर्षित रूप मे बनाया जाता है।

a) अलाउद्दीन खिलजी द्वारा हौज खास:

दिल्ली के हौज खास का निर्माण का श्रेय सबसे पहले खिलजी वंश के अलाउद्दीन खिलजी को जाता है क्योंकि अलाउद्दीन खिलजी के समय मध्यकालीन युग में अपने शासन काल(1296-1316) के दौरान उनकी नई राजधानी सीरी हुआ करती थी और जो कि  सीरी क्षेत्र के निवासियों के लिए पानी की आपूर्ति के लिए निर्माण किया गया था।

हौज खास का उर्दू भाषा में अर्थ है "शाही तालाब""हौस" का उर्दू भाषा में शाब्दिक अर्थ "तालाब" या  "पानी का टैंक(टंकी)" और "खास" का अर्थ है शाहीशाही परिवार से संबंध। इस प्रकार हौज खास का अर्थ "पानी का तालाब या टैंक जो शाही परिवार" के लिए हो।

अलाउद्दीन खिलजी के समय उनके अपने राजधानी सीरी के प्रजा को पानी की समस्या काफी होती थी। बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए सीरी में बने किले में निवासियों को पानी उपलब्ध कराने के लिए तालाब की योजना बनाई। बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने किले के पास बरसात के पानी का एकत्रित करने के लिए खुदाई का करवा कर एक बड़े तालाब का निर्माण करवाया। बादशाह ने अपने नाम पर इसको शुरुआत में हौस-ए-अलाई(hauz-I-Alai) का नाम दिया।

b) बादशाह फिरोज़ शाह तुगलक द्वारा हौज खास:-

दिल्ली के हौज खास का दूसरा व सबसे बड़ा श्रेय बादशाह फिरोज शाह तुगलक को जाता है। अलाउद्दीन खिलजी के शासनकल के कुछ वर्षों बाद इसके रखरखाव के अभाव में तालाब की ओर जाने वाली नहरों में गाद भर गई और यह सुख गई। फिर फिरोजशाह तुगलक ने अपने शासन काल के दौरान(1351-88) लगभग सन 1352 मे इस तालाब को फिर से बनाने का आदेश दिया। और उसके बाद इस तालाब का जीर्णोद्धार करके पानी की आपूर्ति बहाल की गई।और 

अंत में इसको "हौज खास" का नाम दिया गया। तब से यह तालाब "हौज खास" या "शाही तालाब" के नाम से जाना जाने लगा।

  वर्तमान में पार्क के अंदर  पानी का  तालाब


                                                      शाही तालाब के बारे में 



इस पानी के टैंक में तालाब का क्षेत्रफल करीब 123.6 एकड़ है जो कि 50 हेक्टेयर के बराबर है। इसकी चौड़ाई 600 मीटरलंबाई 700 मीटर है और करीब 4 मीटर गहरा है इसका आकार पहले के मुकाबले अब काफी कम हो गया है

"फिरोजशाह तुगलक ने हौज खास के निर्माण के साथ ही इसमे मकबर तो कल कालीन मंडप  मदरसा, मस्जिद,  मकबरा ,मजार व इस्लामिक विधालय भी बनाया है जो कि फिरोजशाह तुगलक ने अपने शासनकाल के दौरान ही इसके अंदर निर्माण किया  है"।


1. तुगल कालीन मकबरे व मण्डप: 

इस  किले के द्वार में प्रवेश करते  ही सबसे पहले  "तुगल कालीन मकबरे या मंडप" मिलेगें जोकि शायद यह मंडप मदरसे के शिक्षकों की रही होगी। यह चार मंडप है जोकि अष्टभुजा , छठभुजा, या वर्गाकार की है। और इनकी छत गुंबद आकार  की है व लाल बलुआ पत्थर से इनका निर्माण किया गया है। इनकेअंदर बनी  स्थल कम ऊंची है जो गुंबद के ठीक नीचे बीचो-बीच हैं। शायद मध्यकालीन में  यह मकबरे थे जो कि बाद में इनको कब्र के लिए प्रयोग किया गया जो सायद शिक्षकों की होगी। संभव हो सकता है कि इनकी योजना इस तरह से बनाई गई होगी कि छात्र अपने  शिक्षकों की छत्रछाया में बैठकर अध्ययन कर सकें। दो सबसे छोटे मंडलों में बहुत गहरे प्रक्षेपित पत्थर के स्तंभ है जो गुंबद के बिल्कुल नीचे हैं।ऐसा प्रतीत होता है कि फिरोजशाह तुगलक के समय यह बड़े भवन या भवनों का हिस्सा रहे होंगे।

               
तुगलक मकबरे के बारे मे लेख

2. मस्जिद:

"हौज खास" किले में प्रवेश करने के बाद दाहिने हिस्से में आपको फिरोज़ शाह तुगलक द्वारा बनाई गई "मस्जिद" मिलेगी। और आपको इस मस्जिद के सामने सीढियां बनी हुई मिलेगी जो पहले के समय में तालाब की ओर जाती होगी।
यह मस्जिद शायद मदरसे में रहने और कार्य करने वाले लोगों की इबादत रही होगी। इस मस्जिद के हिस्सों  की लंबाई 13 मीटर चौड़ाई 12 मीटर है। और जो उत्तर ,पश्चिम , दक्षिण में स्तम्भावली घिरा हुआ है। स्तम्भवाली जो इबादत कक्ष के रूप में प्रयोग की गई है वह 24 मीटर लंबा और 4 मीटर चौड़ा है। पश्चिम दीवार जो मक्का की दिशा का सूचक है कि योजना लीग से हटकर है जो भिन्न है जहां पश्चिमी दीवार बंद होती है यहां एक मेहराब और एक खिड़की बारी-बारी से लगी है जहां से तालाब दिखाई देता है मध्य खिड़की और मस्जिद के दक्षिण भाग से सीढ़ियां तालाब तक जाती है। 
                                                           मस्जिद व मकबरे से तालाब क मकबरा
              
 

        
                                                                         मस्जिद के बारे लेख


3. तीन गुम्बद वाली ईमारत ( टी-आकार मे)

                                                                            तीन गुम्बद 

हौसखास किले के परिसर में आपको अंदर प्रवेश करने के बाद  कालीन मकबरे के  बराबर में ही आपको तीन गुंबद वाली इमारत मिलेगी जो T आकार में है। दिल्ली विरासत लेख के अनुसार इसकी लंबाई 24.7 मीटर और चौड़ाई 6.7 मीटर है जिसके केंद्र से पश्चिम छोर तक 8 मीटर का प्रक्षेपण है। अभी तक इस बात का पता नहीं चल पाया कि इस इमारत का इस्तेमाल किस उद्देश्य के लिए किया जाता रहा होगा । हालांकि कुछ लोग इस में स्थित कई कमरों की वजह से इसे मकबरा कहते हैं लेकिन अब इसमें कब्रों का नामोनिशान तक नहीं है। इसके आकार से ऐसा प्रतीत होता है कि यह मुलाकात स्थल या सभागार रहा होगा जिसकी योजना बड़े समूह को ध्यान में रखकर बनाई गई होगी जो आमतौर पर कक्षाओं के लिए एकत्रित होते होंगे तुगलक वंश के पतन के बाद इसका इस्तेमाल बंद हो गया और इस गुंबद का प्रयोग आसपास के क्षेत्रों के ग्रामीणों द्वारा किया जाने लगा

                                                             तीन गुम्बद के बारे मे लेख



4. फिरोज शाह का मकबरा:

 हौज खास मकबरे के परिसर में ही मस्जिद के सामने फिरोज शाह का मकबरा है जोकि सन 1352 में फिरोजशाह तुगलक ने अपने समय काल में ही बनवाया था। फिरोजशाह तुगलक ने "मदरसा" और अपना "मकबरा" दोनों को एक ही समय बनवाया था। इस मकबरे में फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु जो कि 1388 में हुई थी के पश्चात उनकी कब्र इसी मकबरे में स्थित है। इस मकबरे के बीचो-बीच बनी कब्र फिरोज शाह और "संगमरमर" की अन्य  कब्रे उनके "पुत्र और पोते" की होगी। इस वर्गाकार मकबरे की माप 13.5 मीटर है। इसका आगे का हिस्सा गोल गुम्बद के आकार का है।और यह मकबरा  स्थित है जहां मदरसा के दोनों हिस्सों का संगम होता है। इस मकबरे के गुंबद का शीर्ष पूरे परिसर में सबसे ऊंचा है।इसके अंदर जाने के लिये नही दिया जाता है। दिल्ली विरासत लेख के अनुसार  इस ईमारत को सन् 1508 ईस्वी मे बादशाह सिकन्दर लोदी के आदेशानुसार करवाई गई थी। 


                                                                 फिरोज शाह मकबरे के बारे मे लेख

5.  मदरसा

फिरोजशाह तुगलक ने अपने शासनकाल मे ही  मदरसा और अपना मकबरा 1352 मे ही दोनो को एकसाथ में ही तालाब के देखरेख के लिए यहां पर एक मदरसा बनाया गया था। इस मदरसे में इस्लामिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के लिए निवास स्थल के लिए बनाया गया था।  दिल्ली विरासत लेख के अनुसार, फिरोजशाह मकबरे के पश्चिमी भाग 65.5 मीटर तक फैला है। ऊपरी मंजिल में खुले स्तंभ कमरे है। निचली मंजिल मे छोटी  अंधेरी कोठरीयॉ भी है जो सम्भवत: छा‌त्रो के लिये रही होगी।इसके अंदर रोशनी, हवा के लिये  तन्ग, झरोखे है, और सामान रखने के लिये  छोटे आले बने हुए है । इन  कोठरियो के  सामने  मेहराबी कमरे  थे जो अब ढह चुके है 


            
           
                                                                 मदरसे का पीछला हिस्सा

पश्चिम  भाग :  

मदरसे के पश्चिमी हिस्से के छोर मे एक बडा गुम्बदनुमा  "दो मन्जिला भवन"  है। इस इमारत के सामने के इलाका मूल रुप से  प्रागंण था जिसमे आमने सामने दो इमारते थी और पीछे की ओर बडे गुम्बदनुमा भवन थे। इस दो मन्जिला ईमारत मे दो छोटी-2 बालकनी है जो झील को देखते हुए मदरसे को इस्तमाल किये जाते थे।


                                                                           आमने सामने  दो मन्जिला ईमारत


इस मदरसा में कई छोटे-२ कमरे बने है जो अब खण्डर के रुप मे है यह मदरसा पुरब से पश्चिम दोनो तरफ  खण्डर बन चुके है ।यह मदरसा पहले के समय मे काफी सुंदर बने हुए थे इनका निर्माण ऐसे किया गया थ जिस्से इस मदरसे से तालाब का सुंदर रुप को को आसानी से देख सके और इस मदरसे से तालाब की और आराम से जाया जा सके।


                                                                    पश्चिमी हिस्से के बारे मे लेख


इस मकबरे का परिसर व इसकी खासियत :

हौसखास किले के परिसर में आपने देखा कि "तुगलक कालीन गुंबद" , "फिरोज शाह का मकबरा", मस्जिद, व मदरसा आदि एक खास जगह पर बनाया गया। यह सब हौज खास जो कि एक तालाब के रूप में बनाया गया था के संरक्षण में फिरोज शाह द्वारा धन मुहैया कराकर यह सब मकबरे मदरसामस्जिद इस परिसर के अंदर बनवाई गई। इस परिसर में मदरसा  जो बना हुआ है पहले यह उच्च शिक्षा का एक संस्थान था और इसमें काफी विद्वान शिक्षक को नियुक्त किया गया था वह इसमें दूरदराज से छात्रों को अपनी ओर आकर्षित किया और उन्हें मदरसे में पढ़ने के दौरान वजीफे के तौर पर अच्छी धनराशि दी जाती थी। इस मदरसे में छात्र दूर-दूर से पढ़ने के लिए आते थे और उनके यहीं पर ठहरने की व्यवस्था होती थी। इस मकबरे के परिसर में ही आप हौज खास की झील को बड़े आराम से देख सकते हैं। हौज खास परिसर के अंदर आप एकांत वातावरण में व हरियाली जो कि इस परिसर के अंदर हरा भरा व  कई उद्यान  है। इस मकबरे के परिसर में फिरोजशाह मकबरे के बराबर में ही मदरसे में भूल भुलैया जैसे कक्ष बने हुए है। इस परिसर के अंदर काफी कुछ खंडर हो चुका है लेकिन वह फिर भी एक अपने आप में ऐतिहासिक व एक विशेष स्थल के रूप में अब भी है । हौज खास आज के समय में पर्यटकों की लोकप्रिय जगहों में से एक है।

इस मकबरे की कुछ अन्य तस्वीर 

                                                                        किले का द्वार गेट


                                                                        तीन गुम्बद व हरियाली


                                                                   परिसर के अंदर खंडहर कक्ष

          

हौस खास गावं 

दिल्ली के दक्षिणी जिले में हौज खासहौज खास गांव 14 वी सदी में बसाया  गया है। हौस खास गांव तब ज्यादा अस्तित्व में आया जब बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी नई राजधानी सीरी के लोगों के लिए जल की समस्या को निपटाने के लिए यहां पर एक टैंक का निर्माण करवाया जो कि एक तालाब के रूप में था और उसके कुछ समय बाद फिरोज शाह ने इस तालाब को और अच्छी तरह से बना कर इस तालाब के नजदीक अपना किलामकबरा व मदरसा बनाया  जिससे इस तालाब का नाम "हौज खास" पड़ा। और धीरे-धीरे इस किले के चारों ओर लोगों के समूह द्वारा "रहन-सहन" होने के साथ जहां पर गांव बस गया जिसका नाम "हौस खास गांव" रखा गया। यह नाम यहां पर हौज खास के कारण पड़ा। हौज खास के किले के पास ही होश खास गांव में विभिन्न प्रकार के रेस्टोरेंट,  कैफे,  बार डांस पार्टी , बार रेस्टोरेंट्स ,आदि कई प्रकार के और बार मिलेंगे जहां पर पर्यटक अपने दोस्तों के साथ आनंद प्राप्त कर सकता है।

                                                                                प्रवेश द्वार 
    
                

हौज खास किले के नजदीक ही कुछ अन्य पर्यटन स्थल है।

1. हौज खास पार्क

इस किले के परिसर के नजदीक ही एक हरा-भरा पार्क है जिसके अंदर पर्यटक घूमने के लिए व खेलने के लिए जाते हैं इस पार्क के अंदर ही वह तालाब है जोकि हौज खास या रॉयल टैंक के नाम से मशहूर है। इस पार्क में काफी हरे-भरे पेड़ पौधे मिलेंगे व यह  शांत वातावरण वाला पार्क है इसी के अंदर कुछ जानवर को भी आप देख सकते हैं। इसको हिरन पार्क  भी कहते हैं।

2. हनुमान मंदिर :



हौस खास गाव मे व हौस खास किले के पास ही एक हनुमान मंदिर भी है। जिसमे वहाँ के लोग कि बडी श्रध्दा है और उसमे मंगलवार के दिन पूजा करते है । यह शायद ५०० गज मे फैला होगा। और मंदिर का आकर वर्गाकार है । 







3. जगन्नाथ मंदिर

हौज़ खास गांव में ही हौसखास किले से कुछ दूरी पर भगवान विष्णु का ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर का मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर में काफी श्रद्धालु पूजा करने गए पर्यटक के तौर पर आते हैं इस मंदिर में काफी मन को शांति दे सुंदर रूप में मंदिर के अंदर भगवान की मूर्ति मिलेगी।


4. प्राचीन व खंडर स्मारक


भगवान जगन्नाथ मंदिर के थोड़ी ही दूर पर एक खंडहर स्मारक मिलेगा जो गुंबद- -कार की है और ऊपर छतरी जो की मस्जिद के आकार की होती है। यह
 वर्गाकार आकार में हैं । इसमें शायद किसी अज्ञात की कब्र है जोकि पता नहीं वह किसकी है । इसके मुख्य द्वार पर दो जालिदार जंग्ले  है। इसक आगे का हिस्स मेहराब्दार है ।  यह  खंडहर अब संरक्षित स्मारक है जो कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आती है। इसका निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया होगा





                                                   
                                                                        संरक्षित  के लिए  कानून  


5. प्राचीन व खंडर स्मारक


भगवान जगन्नाथ मंदिर के थोड़ी ही दूर पर एक दूसरी प्राचीन में खंडहर स्मारक है जो कि यह भी एक वर्गाकार के रूप में हैं यह शायद यह एक मस्जिद हुआ करती होगी। यह भी गुंबद आकार में बसे छतरी के प्रकार की हैं जो कि इस्लाम धर्म में मस्जिद के रूप में मानी जाती है।   इसके मुख्य द्वार पर के ऊपर एक आला है जो कि मेहराबदार है। इसक आगे का हिस्स मेहराब्दार है ।इसका निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है जो कि रंग-बिरंगे हैं।










6. बारा खंबा स्मारक

हौज खास गांव में ही एक स्मारक है जिसका नाम "बाराखंबा स्मारक" हैं। दिल्ली विरासत लेख के अनुसार यह स्मारक एक वर्गाकार मकबरे के रूप में हैं जिसकी प्रत्येक भुजा 10.5 मीटर है। इस इमारत के ढांचे से 12 स्तंम्भ निर्मित है। इसके अंदर खड़े होने पर देखा जा सकता है कि अलग-अलग चौड़ाई वाले 12 स्तंभों पर आधारित हैं। एक समय था जब इस भवन के अंदर अनेक स्मारक कब्रे थी और इसके बाहर भी अन्य कई कब्रे  थी। इस इमारत के आसपास कई दिलचस्प ढांचे भी है जैसे एक "सूखा कुआं" एक अनूठा बुर्जनुमा ढांचा और एक वर्गाकार ब्लॉकनुमा सरचना जिसमें चिराग रखने के लिए एक आला बना है यह इमारत संभव लोधी काल की रही होगी। यह  स्मारक दिल्ली पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन आती हैं। इस मकबरे का निर्माण लाल व रंग-बिरंगे बलुआ पत्थर से किया गया है।


                                                     12 खम्बा मकबरा का कुऑ   व दिल्ली विरासत का लेख 

7. दादी पोती के मकबरे


                                                                दादी और पोती के मकबरे

हौज खास गांव में ही एक "दादी-पोती" के नाम से मकबरा है शायद यह मकबरे में दादी और पोती की एक साथ अलग-अलग कब्रे होगी। दिल्ली विरासत लेख के अनुसार दादी-पोती शब्द का प्रयोग पास पास निर्मित 2 मकबरा के लिए किया गया है इसका यह नाम शायद इसलिए रखा गया होगा क्योंकि इनमें से एक मकबरा दूसरे से छोटा है लेकिन यह ज्ञात नहीं कि यहां किसे दफनाया गया था। पोती मकबरे की दीवारें ढालू है और इसके गुंबद पर एक विशेष लालटेन निर्मित है। तुगलक कालीन(1321-1414) इस वर्गाकार मकबरे की एक भुजा 11.8 मीटर है। उत्तरी हिस्से के भार भाग को सजाया गया है जोकि अजीब सा लगता है क्योंकि मकबरे का मुख्य प्रवेश द्वार पर आए दक्षिणी दिशा में होता है बड़ा मकबरा आधार दादी का मकबरा वर्गाकार है जिसकी एक भुजा 15.86 मीटर है यह लोधी काल का है। इस मकबरे के अंदर हरा भरा गार्डन हैं। इस मकबरे के आसपास अभी कोई नहीं जाता है यह मकबरा दिल्ली पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन आता है।

                                                                        दिल्ली विरासत का लेख


हौज खास मकबरे को देखने का व समय प्रवेश टिकट


हौज खास परिसर के अंदर प्रवेश करने का समय सुबह 10:30 से 7:30 बजे तक होता है और इसमें सातों दिन प्रवेश होता है हौसखास परिसर में भारतीयों के लिए ₹25 का टिकट और विदेशों के लिए ₹250 का टिकट होता है

यहां के लिए आने का साधन

हौज खास गांव व किले में  आप अपने साधन व अन्य साधनों द्वारा आया जा सकता है। आप यहां पर बस ,ऑटो टैक्सी ,मेट्रो,  रेलगाड़ी , हवाई जहाज,  आदि के माध्यम से आ सकते हैं।
1. यहां का बस स्टैंड हौज खास गांव लगता है जो कि आप दिल्ली के किसी भी कोने से बस के माध्यम से आ सकते हैं।
2. जहां का मेट्रो स्टेशन आईआईटी,  हौज खासग्रीन पार्क लगता है जिससे आप दिल्ली के आसपास के जगह से दिल्ली मेट्रो के माध्यम से आ सकते हैं। मेट्रो स्टेशन से आपको ऑटो द्वारा 1 किलोमीटर आना पड़ेगा।
3. आप अपनी कार या टैक्सी द्वारा महरौली रोड जा ऐम्स हॉस्पिटल से कुछ ही दूरी रोड के माध्यम से आ सकते हैं।
4. आप यहां पर ऑटो या टैक्सी के द्वारा हौज खास गांव में आ सकते हैं।
5. यह हवाई अड्डा: इंदिरा गांधी इंटरनेशन है । 



:-आशा करता हूं कि आपको मेरे द्वारा यह दी गई जानकारी अच्छी लगी होगी और जब भी आप यहां पर आएंगे तो आपको इसके माध्यम से यहां पर घूमने गए और अन्य कार्य में सहायता मिलेगी अगर यह आपको यह मेरे द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी हो तो इसको अपने दोस्तों या अन्य जगह शेयर करना ना भूले और इसमें कमेंट करके बताएं कि यह कैसा लगा आपको। और इसी तरह की जानकारी पाने के लिए मेरे वेबसाइट द ब्लॉगर को फॉलो करें।


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