अफगानिस्तान का इतिहास प्राचीन से लेकर तालिबान तक (History of Afghanistan from Ancient to Taliban)

क्या आपको पता है🤔? जिस अफगानिस्तान पर आज तालिबान का राज हो चुका है😳!! उसका इतिहास क्या है?🤔🤔 अफगानिस्तान कई वर्षों पहले भारत का हिस्सा रहा था😳😳!! और कब-कब अफगानिस्तान  पर तालिबान का व अन्य शासको का कब्जा और कैसे हुआ😇😇🤔? अफगानिस्तान में कौन कौन से राज्य  है🤔? और अफगानिस्तान का क्या क्षेत्रफल है🤔🤔? आइए चलिए जानते हैं विस्तार से अफगानिस्तान का कई वर्षों पुराना इतिहास😊:-


अफगानिस्तान प्राचीन काल से आधुनिक काल तक।

आज जिस अफगानिस्तान पर "तालिबान" का राज हो चुका है उस अफगानिस्तान का इतिहास कई हजार वर्ष पुराना और "महाभारत काल" से जुड़ा हुआ है। सातवीं सदी तक अफगानिस्तान अखंड भारत के अंतर्गत आता था और भारत के हिस्सों में गिना जाता था। अफगानिस्तान प्राचीन काल से "मध्यकाल" तक खुशहाल व "हरा-भरा" घाटिया और फल फूलों से लदे बगीचे वाला क्षेत्र रहा होता था। अफगानिस्तान पर "प्राचीन काल" से लेकर "आधुनिक काल" तक कई "धर्मों के शासक" व कई  "वंशों" के  राजाओं ने,  "लोकतांत्रिक सरकारों" और वर्तमान में "तालिबान" ने राज किया है। महाभारत काल से प्राचीन काल तक वहां पर "हिंदू राजाओं" का शासक रहा था लेकिन धीरे-धीरे वहां पर मध्य से लेकर आधुनिक काल तक मुस्लिमों का शासक होता गया। और वर्तमान में भी जब तक वहां पर "अमेरिका" की सेना थी तब तक वहां पर "लोकतांत्रिक सरकार" का शासन था लेकिन जब से वहां पर अमेरिका के सैनिकों का जाना शुरू हुआ तब से और आज की तारीख तक वहां पर "तालिबान" का राज हो चुका है।

अफगानिस्तान का शाब्दिक अर्थ

अफगानिस्तान दो शब्दों से मिलकर बना है "अफगान" और "स्थान"। अफगान का अर्थ है "किसी जाति या समुदाय के लोगों से और "स्तान"  का उपसर्ग "स्थान" का अर्थ है वहां की भूमि या क्षेत्र से। इस प्रकार से अफगानिस्तान का शाब्दिक अर्थ है "अफगानो का स्थान या अफगानों की भूमि वाला देश"

"प्राचीन में अफगानिस्तान को गंधार बोला जाता था जिसका अर्थ होता था "गन्ध वाला क्षेत्र" अर्थात "खुशबू वाला क्षेत्र"

अफगानिस्तान का प्राचीन इतिहास

महाभारत काल में

अफगानिस्तान का इतिहास का भी हजारों वर्षों पूर्व का भी रहा है। महाभारत काल के समय में भी महाभारत से भी इसका संबंध रहा है। महाभारत काल के समय में हस्तनापुर का राजा धृतराष्ट्र की  रानी और दुर्योधन की माता का नाम "गंधारी" था जो कि अफगान के कंधार जिले का पूर्व नाम गंधार था। और उस समय गंधार राज्य का राजा "सुबाला" होता था। और उनसे बाद राजा सुबाला के वंश ने शासन किया।

आर्यव्रत काल में

700 ईसा पूर्व जब "आर्यान" आए थे तो वह इसी क्षेत्र के द्वारा आए थे और उन्होंने अफगानिस्तान पर सबसे पहले आकर बसे थे। उस समय अफगानिस्तान को अन्य नाम जैसे आर्याना, खुरासान, आर्यानुम्र विजेता, पश्तून, जैसे नामों से बुलाया जाता था। आर्य "वैदिक सभ्यता"* के धर्म को मानते थे और उनकी भाषा "संस्कृत" होती थी

बौद्ध धर्म काल में

छठी शताब्दी ईसा पूर्व अफगानिस्तान पर वैदिक सभ्यता के बाद "बौद्ध धर्म" के प्रचार के बाद शासन हुआ और यहां पर बौद्ध धर्म स्थापित हुआ। तब यह बौद्ध धर्म का गढ़ हुआ। बौद्ध धर्म में यह गांधार महाजनपद होता था और यहां की राजधानी "तक्षशिला"  हुआ करती थी। तक्षशिला में एक बहुत बड़ा गुरुकुल होता था जो कि काफी दूर-दूर के राजा के राजकुमार शिक्षा ग्रहण करते थे।

फारस का शासन

लगभग 500 ईसा पूर्व यहां पर बौद्ध धर्म के बाद फारस के "हखामनी" ने गांधार को जीत लिया और इस पर शासन किया। हखामनी  ईरानी शासक कहा जाता है क्योंकि ईरानी से आया था और फारस का शासन "ईरान" से लेकर "अफगानिस्तान" तक फैला हुआ था । जिसको फारस कहा जाता था।

महान सम्राट सिकंदर का शासन

लगभग 300 ईसा पूर्व सम्राट सिकंदर जब दुनिया को जीतने निकला तो उसने फारस विजय अभियान के तहत अफगानिस्तान को भी जीत लिया और उसको अपने "यूनान प्रांत" का हिस्सा बनाया।

मौर्य का शासन

लगभग 230 ईसा पूर्व में ही सम्राट सिकंदर की मृत्यु के पश्चात और चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा मगध पर शासन करने के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने गांधार महाजनपद को अपने शासन क्षेत्र में मिला लिया। और मगध के साथ ही मंत्री परिषद द्वारा गंधार महाजनपद पर कई वर्षों तक शासन किया।

शक और पहलव के वंश का शासन

लगभग 100 ईसा पूर्व में शक  मध्य एशिया के निवासी हुआ करते थे और  चारागाह की खोज में भारत आए थे। जिन्होंने धीरे-धीरे अफगानिस्तान में भारत पर कब्जा कर लिया और अलग-अलग जगह अपनी राजधानी स्थापित की और शासन किया लेकिन उन्होंने कुछ ही वर्षों तक शासन किया।

शक के बाद "पहलव वंश" का कुछ वर्षों तक शासन चला इन दोनों शासकों ने अफगानिस्तान पर शासन किया और तक्षशिला को राजधानी बनाया लेकिन पहलव वंश ने तक्षशिला राजधानी को काबुल में स्थानांतरित कर दिया

कुषाणो का शासन

शको-पहलव वंश के बाद कुषाणो  का शासन आया। कुषाण  "यूची" जाति के माने जाते थे।  इसमें सबसे ज्यादा चर्चित नाम "कनिष्क" का होता है कनिष्क ने 78 ईसवीं में राजगद्दी ग्रहण की। कनिष्क ने भी काबुलकंधार पर अपना शासन किया और वहां पर  लगभग 225 ईसवी  तक शासन किया। उन्होंने भारत और अफगानिस्तान पर कई विकास कार्य किये।

शको-पहलवकुषाणो  का शासन के बाद तीसरी से सातवीं शताब्दी तक वहां पर हिंदुओं के अलग-अलग राजाओ ने और बौद्ध धर्म के शासकों ने शासन किया

अफगानिस्तान का मध्यकालीन इतिहास

अरबो का शासन

लगभग आठवीं शताब्दी के शुरुआती में "मोहम्मद बिन कासिम" के नेतॄत्व में अरबों का आक्रमण भारत पर हुआ और उन्होंने सबसे पहले अफगानिस्तान को अपने कब्जे में लिया। और मोहम्मद बिन कासिम का शासन कुछ वर्षों तक अफगनिस्तान पर शासन किया।

महमूद गजनी का शासन

अरबों के शासन के बाद "महमूद गजनवी" का शासन आया। जो तुर्क मूल का निवासी था लेकिन अफगानिस्तान के एक छोटे से शहर "गजनी" का था। गजनी वंश द्वारा विजय अभियान के तहत पूरा अफगानिस्तान को जीत कर अपने कब्जे में ले लिया और उस पर शासन करने लगा। महमूद गजनी में अफगानिस्तान समेत भारत पर 17 बार आक्रमण किया और इसने सबसे ज्यादा "सोमनाथ मंदिर" को लूटा। और महमूद गजनवी का शासन 11 वीं शताब्दी तक चला।

मोहम्मद गौरी वंश का शासन

गजनी का शासन के बाद "मोहम्मद गौरी वंश" का शासन आया जो कि गजनी  से "शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी" ने अपने हाथों में ले लिया और 1173 में अफगानिस्तान का शासक बना। मोहम्मद गौरी का भी भारत के शासकों के साथ कई बार युद्ध किया गया जिसमें  सबसे ज्यादा चर्चित नाम "पृथ्वीराज चौहान" का है।

"महमूद गजनी" और "मोहम्मद गौरी" के शासनकाल के दौरान अफगानिस्तान में काफी लोगों का हिंदू से इस्लाम धर्म परिवर्तन किया गया जिसमें कई कई लोगों ने अपना हिंदू धर्म त्याग कर मजबूरन इस्लाम धर्म को स्वीकार किया.l

गुलाम वंश का शासक

मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद गुलाम वंश का शासन गोवा जो की कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 में राजगद्दी संभाली। उनका कुछ ही वर्षों दिल्ली और अफगानिस्तान पर शासन रहा।

इसी तरह से कई वर्षों तक अफगानिस्तान पर दिल्ली व अन्य जगहों के शासकों ने अफगानिस्तान पर शासन किया। जिनमें कुछ शासक गुलाम वंश( इस वंश को तुर्की थे शासक द्वारा तुर्की अमीर द्वारा चलाया जा रहा था) की तरह थे और कुछ शासक खिलजी वंश( इसका संस्थापक जलालुद्दीन फिरोज खिलजी था), तुगलक वंश( इसका संस्थापक ग़यासुद्दीन  तुगलक था), व सैयद वंश( खिज्र खां) के शासक थे जिन्होंने दिल्ली से ही सेनापतियों द्वारा अफगानिस्तान पर शासन किया। यह 13 वीं शताब्दी से 15 वी शताब्दी के मध्य तक चला।

लोदी वंश का शासन 

15 वी शताब्दी के मध्य में अफगानिस्तान पर लोदी वंश के संस्थापक बहलोल लोदी का शासन हुआ। और इसने दिल्ली पर पहला अफगान राज्य की स्थापना की। इनका शासक कुछ वर्षों तक चला जिसमें "सिकंदर लोदी" ने भी शासन किया।

मुगल वंश का शासन

1526 में मुगल वंश का संस्थापक प्रथम शासक  बाबर  ने जब भारत पर कब्जा किया तब अफगानिस्तान पर कब्जा करके शासन किया गया था । बाबर की मृत्यु के पश्चात बाबर को आगरा के बाद अफगानिस्तान के काबुल में दफनाया गया।

इस तरह से मुगल वंश के शासकों ने जोकि  
1. हुमायूं( इसमें अपने शासन के दौरान काबुल और कंधार को अपने भाइयों के कामरान को शासन करने के लिए दे दिया था), 
2. शेरशाह सूरी( अफगान वंशीय जो की सूर वशं), 
3. अकबर( इन्होंने अपने विजय अभियान के दौरान कंधार के मुजफ्फर हुसैन शासक को और काबुल के हकीम मिर्जा शासक को पराजित करके अपने कब्जे में ले लिया था)  
4. जहांगीर, शाहजहाँ  ने आगरा  के साथ ही अफगानिस्तान पर शासन किया।

शाह अब्बास  का शासन

सफवी  वंश के शाह महान शासकों में एक शाह अब्बास  सन 1622 को जहांगीर के समय में कंधार मुगलों  से जीत लिया गया और इस पर शाह अब्बास ने इस पर अधिकार कर लिया और वह कुछ वर्षों तक कंधार पर शासन किया। इन्होंने ईरान के साथ ही अफगानिस्तान के कंधार पर शासन किया।

नादिरशाह का शासन

यह फारस का शाह था जिसने लंबे वर्षों के बाद ईरान पर प्रभुत्व स्थापित किया । इसके बाद भारत पर 1739 मे  विजय प्राप्त करने के साथ ही इसने अफगानिस्तान पर भी कब्जा कर लिया। इस ने अफगानिस्तान पर कुछ वर्षों तक  तक शासन किया।

शाबाश और नादिर शाह दोनों ही ईरान(फारस) व शाह से संबंध था।

दुर्रानी राजवंश का शासन 

सन 1748 में नादिर शाह की मृत्यु के पश्चात "अहमद शाह अब्दाली" अफगानिस्तान का शासक बना "दुर्रानी" साम्राज्य का  संस्थापक बना। इसको अफगान के कबीलों की परंपरिक पंचायत ने शाह बनाया था। इसने हिंदुस्तान पर 8 बार आक्रमण किया था और 1757 में दिल्ली पर भी कब्जा कर लिया। इसने अफगान समीत दिल्ली पर 25 वर्षों तक शासन किया। इसकी मृत्यु 16 अक्तूबर 1772 मे हूई। 

"इसके द्वारा भी हिंदुओं पर कई अत्याचार किए गए और हिंदुओं मंदिर को लूटा गय। इनकी गिनती भी महमूद गजनी की तरह भारत को लूटने में की जाती है।" मुस्लिम शासकों के शासन काल तक वहां पर इस्लाम धर्म का ही प्रचार और अपनाने को जोर दिया गया जिससे वहां पर दूसरे धर्म के हिंदू और अन्य धर्मों को इस्लाम धर्म में परिवर्तित कराया गया।

इस वशं  में "अहमद शाह" की मृत्यु के पश्चात 1772 में "तिमुरशाह दुर्रानी" का शासन हुआं जोकी अफगानिस्तान पर 1772 से 1793 तक किया।

इसके बाद तिमुरशाह दुर्रानी की मृत्यु के पश्चात "जमान शाह दुर्रानी" का शासन हुआ जोकि 18 वी शताब्दी  के अंत तक शासन किया

जमान शाह दुर्रानी की मृत्यु के पश्चात दुर्रानी वंश के "शासक शाह शुजा" दुर्रानी का शासन हुआ  जो कि  1803-1809  तक किया। 

बरकजई के समूह द्वारा अफगानिस्तान पर

सन 1808 या 1809 शाह शुजा के द्वारा फतेह खान की हत्या कर दी गई (जो की पर बरकजई राजवंश का तत्कालीन प्रमुख व्यक्ति था और "दोस्त मोहम्मद" का बड़ा भाई था) इसके कुछ दिन बाद वहां पर खूनी संघर्ष हुआ जिससे "शाह शुजा" को वहां से  "हेरात" को छोड़कर सभी जगह से वंचित होना पड़ा और वहां से भागकर कश्मीर आकर रहने लगा।। और और सभी प्रदेशों को फतेह खान के भाइयों के बीच बांट दिया गया जिसमें दोस्त मोहम्मद को "गजनी" प्रांत मिला।

इस तरह से दुर्रानी शासन 1825 तक चला जिसमें इस वंश के कई शासकों ने अफगानिस्तान पर शासन किया और अपना शासन चलाया।

सिखों का शासन

18वी और 19 वी शदी   के  बीच अफगानिस्तान और पकिस्तान के पंजाब पर सिखों का शासन वह गया था जिसमें राजा रंजीत सिंह का शासन रहा और उसके बाद दिलीप सिंह का शासन रहा इन दोनों का शासन 19वीं शताब्दी के शुरुआत तक रहा। और उनके शासनकाल में वहां पर  काफी  संख्या में सिख धर्म के लोग हैं जिससे वहां पर कई गुरद्वारा की स्थापना हुई जो आज भी हैं।

बराकजई राजवंश का शासन 

यह वंश भी दुर्रानी वंश की तरह अफगानिस्तान पर "स्वतंत्रता काल" तक सबसे ज्यादा शासन करने वाला वंश बना। "दुर्रानी वंश" के अंतिम शासक "शाह शुजा" के सत्ता हटने के बाद दोस्त मोहम्मद खान ने "बराकजई"  वंश की स्थापना की।

दोस्त मोहम्मद खान के शासनकाल के दौरान यहां पर रुस का भी अफगानिस्तान के प्रांतों में शासन रहा। इसी के शासनकाल के दौरान अफगानिस्तान का कई हिस्सा अंग्रेजों (ब्रिटेन) के हाथों में चला गया

और दूसरी तरफ शाह शुजा दुर्रानी ने सन् 1834 मे  सिख शासक राजा रंजीत सिंह के साथ अपने कोहिनूर के साथ संधि करके दोस्त मोहम्मद खान के साथ युध्द किया लेकिन इस युध्द मे वो हार गया और रंजीत सिहं ने  पेशावर पर कब्जा कर लिया।

अंग्रेजों  ब्रिटेन  का शासन

रूस के बढते कब्जे के डर से अंग्रेजों को यह डर था कि अफगानिस्तान के कारण भारत भी उनके हाथ से ना चला जाए इस कारण से ब्रिटेन ने अफगानिस्तान पर भी अपना कब्जा करने का शुरुआत की जो की सन 1834 के आस-पास ही उन्होंने सबसे पहले अफगानिस्तान के कुछ हिस्से जैसे कंधार, गजनी, और काबुल पर अपना अधिकार जमाया।

और इसी के साथ ही अंग्रेजों ने अफगानिस्तान के पूर्व गद्दी के शासक शाह शुजा दुर्रानी को अफगान का "आमिर"( आमिर का अर्थ मुख्य शासक )‌ बनाया गया जोकि 1939 से 1942 के बीच का घोषित कर दिया जिसके बाद शाह शुजा दुर्रानी ने ब्रिटेन के सहायता से वहा पर शासन किया ।

प्रथम आंग्ल - अफगान युध्द 
अंग्रेजों द्वारा पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए अंग्रेजों ने अफगानिस्तान की सेना के साथ युद्ध किया जोकि 1839 से 1842 के बीच तक चला जिसको "प्रथम अफगान युद्ध" भी कहते हैं। अफगान में  अंग्रेजो के खिलाफ काबुल से लोगों ने विद्रोह कर दिया गया और इसके बाद ब्रिटिश सैनिकों को आत्मसमर्पण कर के वहां से जाना पड़ा।

और इसके कुछ दिनो बाद ही शाह शुजा दुर्रानी की हत्या कर दी गई। 

बराकजई राजवंश का शासन-2

प्रथम अफगान युध्द के बाद  धीरे धीरे "दोस्त मोहम्मद खान" ने अपना खोया हुए सारा राज्य अपना वापिस ले लिया और सिख अफगान के दूसरे युध्द के दौरान अग्रेजो के डर से उसकी सिखो के प्रति सहानुभूति हो गई और उसने अग्रेजो के युध्द के खिलाफ सिखो की मदद की।की। और  सन् 1863  मे उनकी अचानक से मुर्त्यु हो गई।

शेर अलि खान का शासन  और दूसरा अफगान-अग्रेंंज युध्द 

दोस्त मोहम्मद खान की मृत्यु के पश्चात इसका पुत्र "शेर अली खान" 1863 में अफगान का शासक बना और कुछ वर्षों तक शासन किया। सन 1878-80 के मध्य ब्रिटेन सेना ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए दोबारा आक्रमण किया जिसमें शेर अली खान की सेना कमजोर पड़ गई और उसने रूस से गुहार लगाई लेकिन उसने मना कर दिया। और उसको वहां से भागना पड़ा जिसमें उसकी कुछ दिनों बाद 1879 मे मौत हो गई। 

याकूब खान का शासन

शेर अली खान की मृत्यु के पश्चात "याकूब खान" का शासन हुआ और इसने अंग्रेजों से संधि कर ली जिसके बाद वहां पर आक्रमण ना करने का सहमत हुए। सन  1879 मे अफगान विद्रोह के दौरान अंग्रेजी मिशन के सर पियरे केवेग्रेरी" को मार डाला जिसके वजह से ब्रिटेन  ने दोबारा आक्रमण किया और 1879 में काबुल के दक्षिण में हुए युद्ध में अफगान सेना हार गई। और ब्रिटिश सेना ने वहां पर  अपना पूरा अधिकार कर लिया।

"अफगानिस्तान को 1876 में भारत से अलग कर दिया गया"।

इसके कुछ वर्षों पश्चात सन 12 नवंबर 1893 में  ब्रिटेन ने भारत से अफगानिस्तान को अलग करने के लिए भारत और पाकिस्तान से अफगानिस्तान के मध्य एक डूरण्ड रेखा खींच दी गई। इसकी लंबाई 2670 किलोमीटर है। इस समय अफगान का शासक प्रिंस हबीबुल्लाह था।

तीसरा अफगान- ब्रिटेन युद्ध

सन 1917 में "रूसी क्रांति" के बाद अफगान की सेना ने ब्रिटेन की सेना पर अचानक से हमला कर दिया गया और इससे ब्रिटेन की सेना ने अफगानिस्तान पर हवाई से हमला किया जिससे वहां की जनता में आक्रोश फैल गया और  विदेशी सहायता से उस समय के "अमानुल्लाह खान" ने अफगानिस्तान को   1921 मे  ब्रिटेन से युद्धविराम की संधि करा कर मुक्त कराया। और अफगानिस्तान  राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने आया। जो कि एक नक्शे के रूप मे भी जाना जाने लगा।


अमानुल्लाह खान का शासन

इसका शासन 1919 से 1929 तक चला जिसमें अफगानिस्तान को ब्रिटेन से युद्धविराम करते और  9 जून 1921 में मुक्त कराया और अफगानिस्तान को एक नया पहचान दी गई

अफगानिस्तान का गॄह युद्ध

लगभग सन 1929 के आसपास अफगानिस्तान में अमानुल्लाह और उनके अनुयाई या भाइयों के बीच  युद्ध छिड़ गया जिसमें अमानुल्लाह खान को अफगानिस्तान छोड़कर भारत भागना पड़ा।

मोहम्मद जाहिर का शासन

अफगानिस्तान का राजा और बराकजई वंश का अंतिम शासक "जाहिर शाह" का रहा जिसने 1933 से 1973 तक अफगानिस्तान पर शासन किया। इसने अफगानिस्तान में कई आधुनिकीकरण  का विकास किया ।

अफगानिस्तान का गणतंत्र की घोषणा

मोहम्मद जाहिर के शासन काल के अंतिम दिनों में सन 1973 के आसपास अफगानिस्तान पर सोवियत संघ की सेना ने अफगानिस्तान पर कम्युनिस्ट पार्टी के सहयोग के लिए कदम रखा और अफगानिस्तान मे मोहम्मद जाहिर  को राज गद्दी से उतार कर  17 जुलाई 1973 को गणतंत्र  की घोषणा की गई। 

अफगानिस्तान में  गृह युद्ध  सोवियत संघ के साथ 

सन् 1973 के बाद अफगानिस्तान में गणतंत्र की स्थापना होने के कुछ वर्षों  बाद सन 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में "मुजाहिदीन लड़ाकू" द्वारा सोवियत संघ के साथ गृह युद्ध कराया गया जिसमें कई  संख्या में अफगानिस्तान के नागरिक और सोवियत संघ की सेना मारे गए। काफी सैनिक मारे जाने के बाद सोवियत संघ के आर्मी व नेता ने हस्तक्षेप करके अपनी हार को स्वीकार करके 1991 से क्रमबद्ध वापसी जाना शुरू हुआ।

मुजाहिद्दीन को पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन  में प्रशिक्षण वह आर्थिक सहायता की गई और अमेरिका ने लड़ाकू विमान मुहैया कराया जिसकी मदद से मुजाहिदीन लड़ाकू सोवियत संघ को हराने में कामयाब रहे।


मुजाहिद्दीन का शासन 

सोवियत संंघ के जाने के बाद अफगानिस्तान पर मुजाहिद्दीन का शासन हो गया और 1996 तक पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान के रूप में स्थापित हो गया। 

तालिबान:- एक "सुन्नी इस्लामिक अधारवादी" आंदोलन है जिसकी शुरुआत 1994 में दक्षिण अफगानिस्तान में हुए तालिबान का शासन है जिसका अर्थ होता "ज्ञानार्थी छात्र" ऐसे छात्र जो इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधारा पर यकीन करते हैं। यह एक देवबंदी इस्लामिक आतंकवादी संगठन" है।

अफगानिस्तान इस्लामिक अमिरात का शासन  ( तालिबान के रूप में)

सन 1996 में जब धीरे-धीरे अफगानिस्तान पर मुजाहिदीन का शासन हो गया फिर सुन्नी इस्लामिक अधारवादी तालिबान के रूप में पश्तून आंदोलन के सहारे  तालिबान का "इस्लामिक शासन" के रूप में गठन किया गया और 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान के रूप में शासन अफगानिस्तान पर हो गया। इस शासनकाल के दौरान "मुल्ला उमर " देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता हुआ ।अफगानिस्तान पर तालिबान शासन के काल में वहां पर काफी कठोर नियम लागू किए गए और वहां की जनता पर कई ज्यादा अत्याचार किए गए जिससे वहां पर कई जनता ने अफगानिस्तान छोड़कर अन्य देशों पर शरण लिया। तालिबान द्वारा वहां पर शरिया कानून लागू किया गया। जिसमें सबसे ज्यादा अत्याचार वहां की महिलाओं पर हुआ।

तालिबान ने खुद ही अपने आप को सुप्रीम काउंसिल का मुख्य घोषित कर लिया था और तालिबान को सिर्फ कुछ देशों ने ही जैसे पाकिस्तान ,सऊदी अरब, अरब अमीरात ने ही मान्यता दी थी।

अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा हमला

सन 2001 के आसपास तालिबान का ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका में हमला करवाया जिसके कारण अमेरिका में हमला  बदला लेने के लिए अमेरिका की सेना अफगानिस्तान में आई और अफगानिस्तान में ओसामा बिन लादेन को ढूंढ कर अमेरिका के ऑपरेशन द्वारा मारा गया। और उसके बाद तालिबान वहां से पाकिस्तान के पश्चिमी और अफगानिस्तान के दक्षिणी हिस्सों में जाकर छुप गई।  और तब से अमेरिका की सेना वहीं पर अपना डेरा डालकर रहने लगी और इसके कुछ वर्षों बाद ही अफगानिस्तान में एक नई सरकार का गठन हुआ।

अफगानिस्तान में गणतंत्र की सरकार

अफगानिस्तान में अमेरिका के सेना होने के साथ ही तालिबान के शासन समाप्त होने के बाद  वहां पर एक नई सरकार का गठन हुआ अफगानिस्तान में गणतंत्र की सरकार कहा जाता है जो कि 26 जनवरी 2004 को गठन हुआ। इस  सरकार का शासन 2021 के अगस्त  के मध्य तक चला। और इसमें कई राष्ट्रपति जनता द्वारा चुने गए और अफगानिस्तान में कई विकास हुआ वह वहां की जनता को कई सुविधा और कई छूट प्रदान की गई जिससे वे अपने जीवन आसानी से जीते रहे और लोगों को हर मदद मिलती गई। इसमे अन्तिम राष्ट्रपति अशरफ गनी और उपराष्ट्रपति अमरूल्लाह सालेह था।


पुनः तालिबान का शासन

अमेरिका की नई सरकार 2021 में आते ही अमेरिका के राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान से अपनी सारी सेना वापस बुलाने का फैसला किया और जैसे ही यह फैसला हुआ वैसे ही अफगानिस्तान पर तालिबान ने दोबारा हमला किया और धीरे-धीरे वहां पर 15 अगस्त 2021 को युद्ध द्वारा वहां की सरकार गिरा कर पूरे अफगानिस्तान पर अपना कब्जा कर लिया ( पंजशिर को छोडकर)। और अब तालिबानी सेना ने अफगानिस्तान में दोबारा शरिया कानून लागू किया।

अमेरिका ने 30 अगस्त 2021 की रात को पुरे अफगानिस्तान से अपनी सभी सेना व नागरिक को वहा से वापिस बुला लिया और अफगानिस्तान को छोड कर चले गये।

अफगानिस्तान का कुल प्रांत या राज्य व राजधानी

अफगानिस्तान में वर्तमान में कुल 34 प्रांतीय राज्य है जो कि अफगानिस्तान में अलग-अलग हिस्सों में है। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल है
1.बदख़्शान 2.बदगीशी 3.बागलान 4. बल्क़  5.बमपान  6.नुंडी  7.फ़रारू 8. फ़रीयब 9. ग़ज़ानी 10. गोर 11.स्वस्थ
12.हेरात  13. ज़ोजान   14. कबुल  15. कंधार (कंधार)  16. कापिसा   17. ख़ोस्तो  18. कोनार  19. कुंडूजी 20.लगमान  21. कोंरि  22. नगरहर  23. निमरूज़  24. नूरेस्तान 25. ओरुज़्ज़ान 26. पक्तिया 27. कृतिका 28.पंजशिर 29. परवान 30. समंगाना  31. सरे पोल  32. तकरी  33.वरदाक़ी  34.ज़बोली

अफगानिस्तान का कुल क्षेत्रफल व जनसंख्या

अफगानिस्तान का क्षेत्रफल 652 864 किलोमीटर है। और अफगानिस्तान की वर्तमान जनसंख्या 31 ,390 ,200 है। अफ़गानिस्तान इन जीडीपी 19.81 डॉलर है। अफगानिस्तान की अधिकारिक भाषा दरी और पश्तो  है।

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1 टिप्पणियाँ

  1. अमरीका ने ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए अफगानिस्तान आर्मी भेजी थी पर लादेन नही मीला। बाद मे अमरिकाने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान मे से ढूंढ के मारा।

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