उग्रसेन की बावली का इतिहास (History of Ugreshen Ki Baoli)

क्या आप बता सकते हो, बावली किसे कहते है? क्या आप उस बावली का इतिहास जानते है, जो चुनिंदा बावली मे से एक है?इस बावली का निर्माण किसने और क्यो करवाया था? क्या आप जानते है? उग्रसेन की बावली का इतिहास क्या है?क्या आपको पता? यह खंंडहर जैसे दिखने वाली में कितने सीढियां है व कितने कक्ष है? अगर नही जानते, तो आइये चलिये जानते इन सभी के जवाब:-  


उग्रसेन की बावली


बावली का अर्थ

बावली को बावडी भी कहां जाता है। बावली या बावडी का अर्थ है की ऐसा कुआं, तालाब या झरना या कुण्ड जिसमे सीढिया बनी हो, जिसके माध्य्म से हम इसमे जल तक प‌ंहुच सके। प्राचीन काल व मध्यकाल के समय में पानी या जल सीढी‌यादार कुओं व तालाब या कुण्ड और पानी का झरना को बावली कहां जाता था और  उस समय इनका काफी प्रयोग किया जाता था, क्योकि उस समय पानी को इकठ्ठा करने के लिये इनका निर्माण किया जाता था।  प्राचीन व मध्यकाल के समय में  बावली या बावडी  हमारी प्राचीन  "जल संरक्षण प्रणाली" का आधार रही है। इन बावली को जिसने भी बनवाया य जिनकी संरक्षण में आया है  उन सबने इन बावली के नाम अपने हिसाब से रखें(जैसे उग्रसेन की बावली राजा "अग्रसेन" के नाम पर रखा गया)।  बावली या बावडी का सामान्य अर्थ "सीढीदार कुआं व तालाब"बावडी या बावली मे अन्य भाषा जैसे संस्कृत में वापिका, कर्कन्धु  शकुंधुमराठी मे 'बारव, गुजराठी मे 'वाव'  और कन्नड में कल्याणी या पुष्पकर्णी आदि नामो से कहा जाता है।



यह कहां पर है 

उग्रसेन की बावली दिल्ली की चुनिंदा बावलियो में से एक  है। यह भारत की राजधानी दिल्ली के कनांट प्लेस में हैली रोडकेजी मार्ग पर स्थित है।


उग्रसेन की बावली के बारे में

दिल्ली के कनांट प्लेस मेंं स्थित अग्रसेन की बावली  एक सीढीनुमा बावली है जिसको पूर्ण रुप से 14वी शताब्दी मेंं उग्रसेन समाज के लोगो ने निर्माण करवाया था। प्राचीन व मध्यकाल के समय  में यह एक बावली थी जो कि पानी के कुऐं के रुप में प्रयोग किया जाता था लेकिन अब यह एक मशहूर पर्यटल  स्थल के  लिये प्रयोग किया जाता है और सदियों पुरानी व ऐतिहासिक स्थल के साथ ही इसको डरावनी वाली जगह भी कहां जाता था जिससे यह लोगो के मन में यहा आने कि रुचि उत्पन्न हो जाती है। इस बावली के अंदर जैसे ही आप सीढियांं से नीचे की ओर जाते रहेंगे तो आपको एक सुमशान जगह और अधेंरा मिलता जायेगां, जहां आपको अपने कदमोंं और कबूतर व कबूतर की आवाज सुनाई देंगी। इसलिये यहां पर 6 बजे के बाद किसी को रुकने नही दिया जाता। यहां पर दिल्ली के कालेज के छात्र व छात्राएं और स्थानिय लोग के आलावा पर्यटक आते रहतें है। यह जगह आमिर खान की फिल्म "पीके" का हिस्सा भी रहा है।   

शिलालेख 



इस बावली का इतिहास 

दिल्ली के अंदर वैसे तो कई बावली या बावडी है लेकिन उग्रसेन की बावली एक खास चुनिन्दा बावली है क्योकि  यह एक प्राचिन महाभारत काल के समय  में राजा द्वारा निर्मित  और अब  खास  पर्यटल स्थल के लिये जानी जाती  है।  इसलिये इसका इतिहास भी काफी पुराना और प्राचीन है।

  1. ऐसा माना जाता है  कि इसकी स्थापना महाभारत काल के समय में ही एक कुऐ के रूप में हो  गई थी जो की प्यास को मिठाने के लिये की गई थी।
  2. ऐसा  भी कहा जाता है कि इसको बाद मे मध्यकाल मे 14 वी शताब्दी अग्रवाल समाज के पुर्वज राजा "अग्रसेन" ने इसका जीर्णोध्दार करवाया। 14वी शताब्दी मे इसका पूरी तरह से राजा अग्रसेन ने इस बावली का निर्माण करवाया गया, जिससे इसको उग्रसेन या अग्रसेन  की  बावली कहां जाने लगा। 
  3. कुछ लोगो का मानना है कि  यह तुगलक व लोदी काल  13वी शताब्दी से 15वी शताब्दी के मध्य बनी स्थापत्य शैली से मिलता जुलता है जिससे हो सकता है तुगलक या लोदी के समय में निर्माण कराया गया हो।
  4. भारत के  राष्ट्रीय अभिलेखागार के नक्शे के अनुसार -1868 में ब्रिटिश सरकार ने इसका  पुनः निर्माण करवाया गया था जिससे इस स्मारक को "ओजर सेन  की बावली" के रूप में सूचीबद्ध किया गया।

इस बावली का आकार व सरंचना


मेहराबदार 


यह  खण्डहर के रुप मे दिखने वाली बावली एक पर्यटक स्थल के रुप में है। यह उग्रसेन की बावली  60 मीटर लम्बी और 15 मीटर चौड़ी के साथ इसकी संरचना अपने आप में अद्वितीय है क्योंकि इसका आकार उस समय के दिल्ली में मौजूद जलाशयों के पारंपरिक दौर के आकार से काफी अलग है।इस ईमारत की मुख्य विशेषता उत्तर दिशा मे स्थित गहरे कुएं की ओर लम्बी कतारबध्द सीढियां है जो कि करीब 105 सीढियां है। इन सीढियों के दोनो और मोटी दिवार की मेहराबदारयुक्त  गलियारो की शृंखला  है जो कि उत्तर से दक्षिण 50 मीटर  लम्बी और भूतल पर 15 चौड़ी है। यह लाल और अनगढ व गढे हुए पत्थर से निर्मित यह दिल्ली में बेहतरीन बावलियो मे से एक है। यह 3 मंंजिला है जिसमे हो सकते  मेहराबदार में 3 कमरे हो सकते है।  


मेहराबदार रूप में  दिवारे 

पश्चिम की ओर तीन प्रवेशद्वार युक्त एक मस्जिद है। यह एक ठोस ऊंचे चबूतरे  पर किनारों की और भूमिगत दालानो से युक्त है। इसके स्थापत्य में व्हेल मछली की पीठ के  समान "छत" चेत्य आकार की नक्काशी युक्त चार खम्भों का सयुक्त स्तम्भ चाप स्कन्ध युक्त मे प्रयुक्त पदक अलकरण इसको विशिष्टता प्रदान करता है।


इस बावली की कुछ रोचक और महत्वपूर्ण बात

इस उग्रसेन की बावली के कुछ ऐसे महत्वपूर्ण रोचक बाते है जो कि यहां पर पर्यटको को आने के लिये मजबूर करते है:-
  1. इसका निर्माण पानी के लिये किया था जो कि अब शायद इसके अंदर पानी शेष हो।
  2. इसका निर्माण अनगढे पत्थर से किया गया जो कि यह पूरानी स्थापत्य कला को दर्शाता है।
  3. इस  बावली मे 105 सीढीयां है उत्तर से दक्षिण 50 मीटर  लम्बी और भूतल पर 15 चौड़ी है।
  4. इस सीढीयो के द्वारा जैसे जैसे आप निचे जाते रहोंगे तो आपको खण्डहर हवेली व शुमशान जगह कि तरह दिखाई व महसूस देगी।
  5. ऐसा कहा जाता की किसी समय व अब भी इसमे निचे की ओर चमगाद्ड की आवाज आती है।
  6. इसको मौत की बावली भी कहा जाता क्योकि  ऐसा माना जाता है इसमे कुछ लोगो की मुर्त्यु  हो गई जिससे इसके अंदर भूतो व अत्माओ का प्रवेश है। 
  7. इस बावली मे  एक समय काला पानी पाया जाता था और यह काला पानी लोगो को सम्मोहित कर लोगो को अत्महत्या के लिये उकसाता था।
  8. यह दिल्ली की डरावनी जगह मे गिना जाता था और साथ ही यह रह्स्यमई जगह मे गिना जाता है।
  9. यहां पर 6 बजे के बाद किसी को रुकने नही दिया जाता क्योकि  यह एक सुमशान  जगह और अंधेरी जगह है। 
  10. यहां पर कभी नई दिल्लीपुरानी दिल्ली से लोग "तैराकी"  सीखने के लिये आते थे।
  11.  सन 2012 मे इस बावली के नाम से डाक टिकट भी जारी हुआ था।
  12. इस बावली पर कई बालिवुड फिल्म भी बन चुकी है जैसे पीके, झूम बराबर झूम। 
  13. इस बावली मे प्रवेश के लिये कोइ शुल्क नही लगता।
  14. यह बावली बाकी बावली से अब भी बेहतरीन मानी जाती है। 

इस बावली का संरक्षण 

इस प्राचीन स्मारक व पुरात्विक स्थल  उग्रसेन  की बावली का संरक्षण भारतीय पुरात्व स्थल और अवशेष अधिनियम  1958 के अंतर्गत किया जाता है।

इसमे प्रवेश का समय

 
प्रवेश द्वार


इसमे सुबह  9:00 बजे से शाम के 5:30 बजे तक प्रवेश कर सकते है और यह हफ्ते के सभी दिन खुला रहता है। 


यहा के यातायात के साधन 


इस बावली के पास आने के लिये आप ओटो टेक्सी , कार,  बस, रेल, मेट्रो रेल,हवाई जहाज के माध्यम से कही से भी आ जा सकते है

  1. यहा का नियर बस स्टोप "टोल स्टॉय मार्ग बाराखम्भा क्रासिंग" मेक्स मूलर भवन   है ।
  2. यहा का नियर मेट्रो स्टेशन "बाराखम्भा" पडता है।
  3. यहा नियर रेलवे  स्टेशन नई दिल्ली का है।
  4. यहा  का पास हवाई अड्डा इंदिरा गांधी इंटरनेशनल हवाई अड्डा है । 

यहां के नजदीकी अन्य  ऐतिहासिक मकबरे व किले और अन्य स्थान 

1. दिल्ली का इंडिया गेट (इंडिया गेट (क्लिक करे)
3. दिल्ली का पुराना किला ( पुराना किला ( यहा क्लिक करे)
5. गुरुद्वारा बंगला साहिब (बगंला साहिब( यहा क्लिक करे)
6. गुरुद्वारा रंंकाब गंंज(गुरुद्वारा रंकाब गंज )

अतः दोस्तों में आशा करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी और आपको मेरे द्वारा दी गई है जानकारी समझ आ गई होगी। अगर मेरे द्वारा यह ऐतिहासिक स्थल की जानकारी अच्छी लगी हो तो इसको अपने दोस्तों में जरूर शेयर करें।

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