उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के बारे में (About Mahakaleshwar Temple of Ujjain)

क्या आप जानते हो? भारत के कुल  12 ज्योतिर्लिंग है! और उनमें से एक ज्योतिर्लिंग उज्जैन में है, जिसको महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता है! क्या आप महाकालेश्वर का इतिहास जानते हो? क्या आप जानते हो? महाकालेश्वर की स्थापना किसने कब और कैसे की? इस मंदिर को महाकलेश्वेर क्यों कहा जाता है? कैसे इस मंदिर का नाम महाकालेश्वर पड़ा ? क्या आप जानते हो? महाकालेश्वर मंदिर की क्या खास बात है? तो चलिए इन सभी सवालों के जवाब जानते है|  महाकालेश्वर मंदिर  के बारे मे :-

Mahakal Temple

आज हम इस पोस्ट में आपको भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में से 1 ज्योतिर्लिंग जो कि महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है के बारे में और इस मंदिर के इतिहास के बारे में बताएंगे और आपको इसके इतिहास के साथ ही वर्तमान स्थिति में इस मंदिर के आसपास और कौन-कौन से मंदिर है इसके साथ ही हम आपको महाकालेश्वर मंदिर में जो अभी वर्तमान में कोरिडोर बना है उसके बारे में भी आपको एक एक मूर्ति के बारे  में बताएंगे। जो अपने आप में एक भव्य रूप में बना हुआ है और रात के समय में अलग ही भव्यस्वरूप में दृश्य दिखाई देता है 

उज्जैन शहर का यह मंदिर और महादेव का मंदिर को महाकालेश्वर(महाकाल) मंदिर के नाम से जाना जाता है जो कि भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।


यह मंदिर कहां पर है

यह भारत के राज्य मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है और इंदौर से 45 किलोमीटर दूर पड़ता है।  ujjain shahar




उज्जैन महाकाल मंदिर के बारे में (सरकारी वेबसाइट से) 

उज्जयिनी के श्री महाकालेश्वर भारत में 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का विभिन्न पुराणों में वर्णन किया गया है। कालिदास से शुरू करते हुए, कई संस्कृत कवियों ने इस मंदिर को भावनात्मक रूप से समृद्ध किया है। उज्जैन भारतीय समय की गणना के लिए केंद्रीय बिंदु हुआ करता था और महाकाल को उज्जैन का विशिष्ट पीठासीन देवता माना जाता था। समय के देवता, शिव अपने सभी वैभव में, उज्जैन में शाश्वत शासन करते हैं। महाकालेश्वर  मंदिर का शिखर आसमान में चढ़ता है। आकाश के खिलाफ एक भव्य अग्रभाग, अपनी भव्यता के साथ आदिकालीन विस्मय और श्रद्धा को उजागर करता है। महाकाल शहर और उसके लोगों के जीवन पर हावी है। यहां तक ​​कि आधुनिक  व्यस्त दिनचर्या के बीच भी, और पिछली परंपराओं के साथ एक अटूट लिंक प्रदान करता है। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, महाकाल में लिंगम (स्वयं से पैदा हुआ), स्वयं के भीतर से शक्ति (शक्ति) को प्राप्त करने के लिए माना जाता है, अन्य छवियों और लिंगों के खिलाफ, जो औपचारिक रूप से स्थापित हैं और मंत्र के साथ निवेश किए जाते हैं- शक्ति। महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण दक्षिणामूर्ति मानी जाती है। यह एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक परंपरा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर में पाया जाता है। मंदिर तीन मंजिला है। सबसे निचले, मध्य और सबसे ऊपरी भाग में क्रमशः महाकालेश्वरओंकारेश्वर और नागचंद्रेश्वर के लिंग स्थापित हैं। महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं। दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है। तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है। 

 मंदिर-परिसर में कोटि तीर्थ नामक एक बहुत बड़े आकार का कुंड भी मौजूद है। कुंड का निर्माण सर्वतोभद्र शैली में किया गया है। कुंड और इसका जल दोनों ही अत्यंत दिव्य माने जाते हैं। कुंड की सीढ़ियों से सटे रास्ते पर, परमार काल के दौरान निर्मित मंदिर की मूर्तिकला भव्यता का प्रतिनिधित्व करने वाली कई छवियां देखी जासकती हैं। कुंड के पूर्व में एक बड़े आकार का बरामदा है जिसमें गर्भगृह की ओर जाने वाले मार्ग का प्रवेश द्वार है। बरामदे के उत्तरी भाग में एक कक्ष में श्री राम और देवी अवंतिका की प्रतिमाओं की पूजा की जाती है। मुख्य मंदिर के दक्षिणी हिस्से में, शिंदे शासन के दौरान निर्मित कई छोटे शैव मंदिर हैं, इनमें वृद्ध महाकालेश्वर, अनादि कल्पेश्वर और सप्तर्षि के मंदिर प्रमुख हैं और वास्तुकला के उल्लेखनीय नमूने हैं।

महाकालेश्वर का लिंग विशाल है। चांदी से मढ़ा नागा जलाधारी और गर्भगृह की छत को ढकने वाली खुदी हुई और गूढ़ चांदी की प्लेट मंदिर की अतिरिक्त भव्यता को बढ़ाती है। ज्योतिर्लिंग के अलावा, गर्भगृह में गणेश, कार्तिकेय और पार्वती की आकर्षक और छोटे आकार की छवियां देखी जा सकती हैं। दीवारों के चारों ओर भगवान शिव की स्तुति में शास्त्रीय स्तुतियाँ प्रदर्शित हैं। नंदा दीप सदैव प्रज्वलित रहता है। निकास पथ में, एक विस्तृत हॉल है जिसमें अत्यंत आकर्षक धातु उद्धृत पत्थर नंदी को बैठे हुए विनम्र मुद्रा में देखा जा सकता है। ओंकारेश्वर मंदिर के ठीक सामने का प्रांगण मंदिर-परिसर की भव्यता को बढ़ाता है। इस मंदिर के ठीक बगल में, पूर्व की ओर दो स्तंभ हैं जो मंदिर की वास्तुकला में बहुत कुछ जोड़ते हैं। महाकालेश्वर का मंदिर वास्तुकला की भूमिजा, चालुक्य और मराठा शैलियों का एक योजनाबद्ध मिश्रण है। लघु-श्रृंगों वाला शिखर अत्यंत विचित्र है। पिछले वर्षों में इसके ऊपरी हिस्से को सोने की प्लेट से ढक दिया गया है।

 महाशिवरात्रि के दिन, मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है, और रात में पूजा होती है।

इस मंदिर का इतिहास 

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का  इतिहास काफी प्राचीन माना जाता है इसका उल्लेख कई पुराणों में मिलता हैमहाभारत, शिवपुराण और स्कन्दपुराण में महाकाल के बारे में खूब वर्णन किया गया है। महाकालेश्वर मंदिर के इतिहास के बारे में बारे में अलग अलग लोगो की अलग अलग राय है। कुछ लोगो का कहना है कि भगवान शिव यहा दूषण नामक राक्षस का वध करने के लिए अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए यहाँ पर उत्पन हुए थे व कुछ लोगो का कहना है भक्त गोप बालक की भक्ति से प्रसन्न   होकर यहा प्रकट हुए थे । जबकि कुछ लोगो की मान्यता  है कि भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंग भगवान् शिव के स्वयं के रूप में प्रकट हुए थे । 

मंदिर का पौराणिक इतिहास

इस मंदिर का  पौराणिक इतिहास रहा है जिसमे कहा जाता है जिसमे कहा जाता है एक राजा शिवपूजन कर रहे थे तो एक गोप बालक उनको शिवपूजन करते देख लालायित हो उठा और उसके मन में पूजा करने की इच्छा जाग उठी और और उसे बालक ने रास्ते में जाते हुए पूजा सामग्री जूटाने में जुट गया लेकिन मैं फिर भी सारी सामग्री ने जुटा पाया लेकिन उसके मन में जागृत इच्छा कम नहीं हुई और उसने एक सामान्य पत्थर लेकर भगवान शिव की पूजा आरंभ कर दी। उसने पत्थर पर पुष्प, चंदन आदि अर्पित किए और राजा की भांति उपासना में डूबता चला गया। गोप बालक की माता ने भोजन के लिए उसको कई बार पुकारा लेकिन वह बालक अपनी जगह से नही हिला और पूजा में ही लीन रहा। उस बालक की माता के बार-बार बुलाने पर जब बालक नहीं आया तो उसकी माता ने उसके हठ को देखकर अत्यधिक क्रोध किया और वह पत्थर उठाकर फेंक दिया। जिससे वह बालक अत्यधिक क्रोध हुआ और जोर-जोर से रोने लगा और मैं भगवान शिव का नाम लेते-लेते बेहोश हो गया। इसके बाद बालक की श्रद्धा भक्ति देख भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और वह बालक के लिए स्वयं रतन से बने विशाल का मंदिर खड़ा कर दिया जिसमें एक अत्यधिक प्रकाश वाला ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं जब बालक होश में आया तो इसको देख व प्रसन्न हुआ और भगवान शिव की भक्ति में दोबारा खो गया। तब से यह महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। 

एक अन्य कथा अनुसार अवंती नगरी में एक वेद कर्मरत ब्राह्मण रहा करते थे। वे अपने घर में वैदिक कर्मों के अनुष्ठान में लगे रहते थे। भगवान शंकर के परम भक्त वह ब्राह्मण प्रतिदिन पार्थिव लिंग का निर्माण कर शास्त्र विधि से उसकी पूजा करते थे। हमेशा उत्तम ज्ञान को प्राप्त करने में तत्पर उस ब्राह्मण देवता का नाम वेदप्रिय था। वेदप्रिय स्वयं ही शिव जी के अनन्य भक्त थे, जिसके संस्कार के फलस्वरूप उनके शिव पूजा-परायण ही चार पुत्र हुए। वे तेजस्वी तथा माता-पिता के सद्गुणों के अनुरूप थे। उन चारों पुत्रों के नाम देवप्रिय, प्रियमेधा संस्कृत और सुवृत थे।

उन दिनों रत्नमाल पर्वत पर दूषण नाम वाले धर्म विरोधी एक असुर ने वेद, धर्म तथा धर्मात्माओं पर आक्रमण कर दिया। उस असुर को ब्रह्मा से अजेयता का वर मिला था। सबको सताने के बाद अन्त में उस असुर ने भारी सेना लेकर अवन्ति (उज्जैन) के उन पवित्र और कर्मनिष्ठ ब्राह्मणों पर भी चढ़ाई कर दी। उस असुर की आज्ञा से चार भयानक दैत्य चारों दिशाओं में प्रलयकाल की आग के समान प्रकट हो गये। उनके भयंकर उपद्रव से भी शिव जी पर विश्वास करने वाले वे ब्राह्मणबन्धु भयभीत नहीं हुए। अवन्ति नगर के निवासी सभी ब्राह्मण जब उस संकट में घबराने लगे, तब उन चारों शिवभक्त भाइयों ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा- आप लोग भक्तों के हितकारी भगवान शिव पर भरोसा रखें। उसके बाद वे चारों ब्राह्मण-बन्धु शिव जी का पूजन कर उनके ही ध्यान में तल्लीन हो गये।

सेना सहित दूषण ध्यान मग्न उन ब्राह्मणों के पास पहुँच गया। उन ब्राह्मणों को देखते ही ललकारते हुए बोल उठा कि इन्हें बाँधकर मार डालो। वेदप्रिय के उन ब्राह्मण पुत्रों ने उस दैत्य के द्वारा कही गई बातों पर ध्यान नहीं दिया और भगवान शिव के ध्यान में मग्न रहे। जब उस दुष्ट दैत्य ने यह समझ लिया कि हमारे डाँट-डपट से कुछ भी परिणाम निकलने वाला नहीं है, तब उसने ब्राह्मणों को मार डालने का निश्चय किया।

उसने ज्योंही उन शिव भक्तों के प्राण लेने हेतु शस्त्र उठाया, त्योंही उनके द्वारा पूजित उस पार्थिव लिंग की जगह गम्भीर आवाल के साथ एक गडढा प्रकट हो गया और तत्काल उस गड्ढे से विकट और भयंकर रूपधारी भगवान शिव प्रकट हो गये। दुष्टों का विनाश करने वाले तथा सज्जन पुरुषों के कल्याणकर्त्ता वे भगवान शिव ही महाकाल के रूप में इस पृथ्वी पर विख्यात हुए। उन्होंने दैत्यों से कहा- अरे दुष्टों! तुझ जैसे हत्यारों के लिए ही मैं महाकाल प्रकट हुआ हूँ।
इस प्रकार धमकाते हुए महाकाल भगवान शिव ने अपने हुँकार मात्र से ही उन दैत्यों को भस्म कर डाला। दूषण की कुछ सेना को भी उन्होंने मार गिराया और कुछ स्वयं ही भाग खड़ी हुई। इस प्रकार परमात्मा शिव ने दूषण नामक दैत्य का वध कर दिया। जिस प्रकार सूर्य के निकलते ही अन्धकार छँट जाता है, उसी प्रकार भगवान  शिव को देखते ही सभी दैत्य सैनिक पलायन कर गये। देवताओं ने प्रसन्नतापूर्वक अपनी दन्दुभियाँ बजायीं और आकाश से फूलों की वर्षा की। उन शिवभक्त ब्राह्मणों पर अति प्रसन्न भगवान शंकर ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि मै महाकालेश्वर तुम लोगों पर प्रसन्न हूँ, तुम लोग वर मांगो।

महाकालेश्वर की वाणी सुनकर भक्ति भाव से पूर्ण उन ब्राह्मणों ने हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक कहा- दुष्टों को दण्ड देने वाले महाकाल! शम्भो! आप हम सबको इस संसार-सागर से मुक्त कर दें। हे भगवान शिव! आप आम जनता के कल्याण तथा उनकी रक्षा करने के लिए यहीं हमेशा के लिए विराजिए। प्रभो! आप अपने दर्शनार्थी मनुष्यों का सदा उद्धार करते रहें।
भगवान शंकर ने उन ब्राह्माणों को सद्गति प्रदान की और अपने भक्तों की सुरक्षा के लिए उस गड्ढे में स्थित हो गये। उस गड्ढे के चारों ओर की लगभग तीन-तीन किलोमीटर भूमि लिंग रूपी भगवान शिव की स्थली बन गई। ऐसे भगवान शिव इस पृथ्वी पर महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुये।

मंदिर का प्राचीन इतिहास

अगर हम उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर के प्राचीन काल के इतिहास की बात करें तो यह राजा सम्राट चक्रवर्ती अशोक मौर्य के काल से लेकर उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समय इस मंदिर का उद्धार होता रहा है। सम्राट अशोक मौर्य के समय उज्जयिनी अवन्ति राष्ट के अधीन एक राजधानी के रूप में थी जिसका संचालन सम्राट अशोक मौर्य अपने सेनापति द्वारा किया करते थे और उज्जयनी पर अपनी नजर  रखते थे । इनके  काल में ही उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का थोड़ा बहुत पुन: उद्धार हुआ था।  इसके बाद सबसे  पुन: उद्धार महाराजा विक्रमादित्य के काल में हुआ जब वह 57 ई.पू. शक वंशो के राजा को पराजित करके उज्जैन के गद्दी पर बैठे। इनके समय में ही इस  मंदिर का सबसे ज्यादा उद्धार  हुआ है क्योंकि यह  महाकाल के परम भक्त थे इसलिए महाकाल के मंदिर के पीछे ही इनका भी एक मंदिर बनाया गया है.

ऐसा भी कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के बाद यहाँ का कोई भी महाकाल के आलावा दूसरा राजा नहीं हुआ है और न ही यहाँ कोई दूसरा राजा रात के समय रुकता है यहाँ कहावत राजा भोज  के समय से चली आ रही है। 

इसके बाद राजा हर्षवर्धन के समय तक इस मंदिर का देखरेख होती रही और इस मंदिर की रक्षा करते रहे। 

मंदिर का मध्यकालीन इतिहास 

इस मंदिर के अगर हम मध्यकालीन इतिहास की बात करे तो विद्वानो  से पता चलता है राजा हर्षवर्धन के बाद  जब सन 1107 से  1728  तक उज्जैन पर यवनो का शासन था इन्ही के शासन में एक राजा राजाभोज थे जिन्होंने मंदिर के उध्दार करवाया था जिसमे इन्होने मंदिर के शिखर को और ऊंचा  करवाया था। इनके शासन काल में यहाँ पर कई बार हमला हो चूका था जिसमे यहाँ  सब मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो चुके थे  इन्ही शासनों के बीच दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश सन 1235 में उज्जैन पर आक्रमण कर उज्जैन के सभी मंदिरो को नष्ट कर दिया था। और इसके साथ इसने शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। तब वहा  के एक शासक ने महाकाल मंदिर के गर्भगृह में स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को आक्रमणों से  सुरक्षित बचाने के लिए करीब 550 वर्षों तक पास में ही बने एक कुएं में रखा गया था।

कहा जाता है जब 15 वी शताब्दी में मुगलो शासन आया तो उनमे सम्राट अकबर व्  16 शताब्दी के आरम्भ में औरंगजेब ने भी उज्जैन के महाकलेश्वर मंदिर के विकाश में अपना योगदान दिया था जिसमे वहां के पुजारियों को भी दान भेट किया था ।

16 वी शताब्दी  के मध्य में उज्जैन में राजस्थान के राजाओ ने उज्जैन मंदिर व् उज्जैन का विकाश किया जिसमें उन्होंने उज्जैन में  जंतरमंतर का निर्माण करवाया  और इसके साथ ही  उज्जैन के मंदिर में भी विकाश करवाया जिसमे राजा जय सिंह  द्वितीय ने महाकाल के शिखर पर शिलालेख में सोने परत चढ़वाई थी। साथ ही उन्होंने कोटि तीर्थ का निर्माण भी कराया था। 

इसके बाद उज्जैन सन् 1737 ई. में उज्जैन सिंधिया वंशमराठा वंश के अधिकार में आया उनका यहाँ पर शासन सन 1810 ई. तक  रहा जिसमें इन्होने उज्जैन का सर्वांगीण विकास  किया  जिसमे इन्होने मंदिर का खोया हुआ गौरव पुन: वापिस लाये। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं - पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।  इनके बाद  राणोजी सिंधिया ने महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोध्दार कराया।

वर्तमान में दिखने वाले महाकाल मंदिर को लगभग 150 साल पहले राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने बनवाया था। हालांकि, इसके बाद श्रीनाथ महाराज महादजी शिंदे और महारानी बायजाबाई शिंदे ने इस मंदिर की समय-समय पर मरम्मत करवाई और कई महत्वपूर्ण बदलाव भी किए। बताया जाता है कि इसके निर्माण में मंदिर से जुड़े प्राचीन अवशेषों का भी प्रयोग किया गया है।

मंदिर का आजादी  से पहले का  इतिहास

महाकाल का वर्तमान मंदिर अठारहवीं सदी के चौथे-पांचवें दशक के दौरान बनाया गया था। इसके साथ ही मराठा समुदाय के धार्मिक विचारधारा वाले सरदारों ने मंदिर-परिसर में कई मंदिरों का भी निर्माण कराया। इस अवधि के दौरान कई प्राचीन परंपराएँ जैसे पूजा अभिषेक, आरती, श्रावण मास में सवारी (जुलूस), हरिहर-मिलन आदि को भी पुनर्जीवित किया गया। ये आज भी आनंदपूर्ण समारोह और भक्तिपूर्ण उत्साह के साथ जारी हैं। सुबह की भस्मारती, महाशिवरात्रि, पंच-क्रोसी यात्रा, सोमवती अमावस्या आदि मंदिर के अनुष्ठानों से जुड़े विशेष धार्मिक अवसर हैं। कुंभ पर्व के समय मंदिर-परिसर की उचित मरम्मत और कायाकल्प किया जाता है। 

18 वि शताब्दी के मध्य से लेकर देश के आज़ादी तक उज्जैन मालवा शासकों के साथ ही ब्रिटेन की हुकूमत के अधीन आया । इनके हुकूमत के अधीन में इस मंदिर का  कुछ ज्यादा उध्द्दार नहीं किया गया । लेकिन महाकालेश्वर के भक्तो के लिए उज्जैन में रेलवे की लाइन का निर्माण करवाया गया और कुछ रेलगाड़ी को भी चलाया गया था।

मंदिर का आजादी  से वर्तमान तक   इतिहास

इस मंदिर का अगर हम आजादी  इतिहास की बाद करे तो देश के आज़ाद होने के बाद उज्जैन को मध्य प्रदेश के अधीन रखा गया जिसमे उज्जैन की विकास मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा किया गया और साथ ही  उज्जैन के विधायक व सांसदो द्वारा निर्माण व् जीर्णोध्दार किया गया 

जिसमें उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दिन भस्म आरती, श्रृंगार होती है। बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा 1970  के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया है जिसके निर्देशन में यहाँ की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है। हाल ही में इसके 117  शिखरों पर 16  किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है।वर्ष 1980 में, आगंतुकों की सुविधा के लिए एक अलग मंडप का निर्माण किया गया था। 1992 में, मध्य प्रदेश सरकार और उज्जैन विकास प्राधिकरण ने विशेष रूप से विशेष मरम्मत में योगदान दिया और तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए प्रावधान किए। यही प्रक्रिया आगामी सिंहस्थ के समय भी अपनाई जा रही है।
 

अब मंदिर में दान के लिए इंटरनेट सुविधा भी चालू की गई है साथ ही मंदिर की बाहर से व् ऑनलाइन लाइव दर्शन का आयोजन किया गया ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में

2014  से बीजेपी की केंद्र सरकार आई तो उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर  में काफी विकाश किया गया है इन्होने मंदिर में उज्जैन कॉरिडोर  के नाम से एक प्रोजेक्ट तैयार किया गया। इस कॉरिडोर में भगवान शिव  से संबंधित अनेक मूर्तियों का चित्रांकन किया गया और विभिन मूर्तियो की स्थापना की गई है। इसके साथ ही करीब 114 स्तम्भ बनाये गए है। इसके साथ ही करीब 114 स्तम्भ बनाये गए है इन सभी स्तम्भ और मूर्तियों के सहारे महदेव की कथा का वर्णन दर्शाया गया है। इस कॉरिडोर की कुल लम्बाई 920 मीटर है यह एक गलियारे से लेकर कॉरिडोर के प्रवेश द्वार तक है। 


मंदिर  वर्तमान  के बारे में  

11  अक्टूबर 2022  को उज्जैन कॉरिडोर  निर्माण पूरा हुआ है जिसमे मंदिर  के मुख्य दरवाजे का निर्माण कार्य अभी चल रहा है और 12 अक्टूबर 2022 से इस कॉरिडोर को आम जनता के लिए खोल दिया गया है 

इस कॉरिडोर में भव्य प्रवेश द्वार बनाया गया है। महाकाल कॉरिडोर में शिव तांडव स्त्रोत, शिव विवाह, महाकालेश्वर वाटिका, महाकालेश्वर मार्ग, शिव अवतार वाटिका, प्रवचन हॉल, रूद्रसागर तट विकास, अर्ध पथ  क्षेत्र, धर्मशाला और पार्किंग सर्विसेस भी तैयार किया गया है। इससे भक्तों को दर्शन करने और कॉरिडोर घूमने के दौरान खास अनुभव प्राप्त होता है और साथ ही यह आपको मोहित  कर देगा ।


अगर आप पश्चिम दिशा से प्रवेश करेंगे तो  इस महाकल के कॉरिडोर  के पथ पर सबसे पहले आपको नजर आएगा महाकाल का सबसे प्रिय गण नंदी, जिसे एक द्वार का स्वरूप देकर विशालकाय रूप में शिखर पर 4 नंदी प्रतिमा को विराजमान कर द्वार बनाया गया है जिसके ठीक सामने शिव पुत्र गणेश और विपरीत दिशा में त्रिशूल और रुद्राक्ष की मूर्ति नजर आएगी। इस भव्य नंदी द्वार में 10 दिगपाल और 8 अलग-अलग पिलर सुंदर कलाकृतियों के साथ नजर आएंगे।
  
नंदी द्वार


फिर नंदी द्वार के प्रवेश के बाद ही आपको कॉरिडोर में कमल को नजर आएगा जिस के बीचो बीच ध्यान मुद्रा भगवान महादेव  में दिखाई देंगे और चार अलग-अलग दिशाओं में चार सिंह की मूर्ति भी लगाई गई हैं। फव्वारे और इस कमल कुंड की खूबसूरती रात की रोशनी में देखते ही बनती है। कहा  जाता है कि महाकाल वन के वक्त इसी स्थान पर कमल खिला करते थे। यही वजह है किस स्थान पर कमल को तैयार कर शिव को ध्यान मुद्रा में मूर्त रूप में दिखाया गया है।  



यह  कॉरिडोर आपको  भगवान शिव से जुड़े अलग-अलग मूर्तियों  को बेहद ही खूबसूरती के साथ दिखायेगा, साथ ही पौराणिक दृष्टिकोण से लोगों का ज्ञान वर्धन भी करता है।   कमल कुंड के ठीक सामने सप्त ऋषि मंडल बना है, जिसके ठीक बीच मे बीच में इस कॉरिडोर का सबसे 54 फीट ऊंचा शिव स्तंभ नजर आएगा।  सबसे ऊपर पांच मुखी शिव, फिर नीचे नाट्य ध्यान मुद्रा में शिव और ठीक उनके नीचे शिव के 4 गहने डमरु, अर्धचंद्र, सर्प, त्रिशूल नजर आएंगे और उनके बारे में नीचे श्लोक भी लिखे गए हैं। पुराणों में उल्लेख है कि सप्त ऋषि भगवान शिव के पहले शिष्य थे,  जिन्हें महाकाल ने दीक्षा दी थी। यही वजह है सप्त ऋषि की प्रतिमा के नीचे उक्त ऋषि की गाथा भी म्यूरल के जरिए दर्शाई गई है।  माना जाता है कि महाकाल से सप्त ऋषि के दीक्षा लेने के दिन को ही गुरु पूर्णिमा माना गया। महाकाल कॉरिडोर में धर्म और तकनीक का अनूठा संगम भी आपको देखने को मिलेगा। क्योंकि यह जितनी  भी मूर्तियां है, उन सब की अपनी एक कहानी है और इन कहानियों को जानने के लिए आपको सिर्फ इन मूर्तियों के सामने लगे बार कोड को स्कैन करना होगा। कैंप करते की मूर्तियों से जुड़ी कहानी ऑडियो और टेक्स्ट फॉर्मेट में आपके मोबाइल में आ जाएगी।
सप्त ऋषि 


इस पूरे महाकाल कॉरिडोर में अलग-अलग महाकाल वाटिका तैयार की गई हैं उनमें से एक  त्रिपुरासुर का वध करते हुए त्रिदेव की भव्य मूर्तियां है,जो कि बहुत ही भव्य रूप में दिखाई गई है। शिव पुराण में त्रिपुरासुर के वध का उल्लेख है इस मूर्ति में सारथी के रूप में ब्रह्मा, शिव के बाण में विष्णु हैं। एक रथ के पहिए सूर्य और चंद्र हैं, चार श्वेत अश्व  इसे खींच रहे हैं जो कि चार वेद हैं, ये वो दृश्य है जिसमें सृष्टि को बचाने के लिए ब्रह्मा विष्णु महेश एक साथ त्रिपुरासुर से युद्ध कर रहे हैं।  इस कॉरिडोर को शिवपुराण की कथाओं के आधार पर तैयार किया गया है।  इस कॉरिडोर को इस 900 मीटर लंबी म्यूरल वाल का स्वरूप देकर 54 अलग अलग शिव कथा, शिव गाथाओं को म्यूरल के माध्यम से बनाया  गया है।  


त्रिपुरासुर का वध

जब आप महाकाल कॉरिडोर से होते हुए भगवान महाकाल के दर्शनों के लिए आगे बढ़ेंगे तो आपकी नजरें प्रतिमाओं पर जाकर टिक जाएंगी जो भगवान शिव के जीवन से जुड़े अलग-अलग प्रसंगों को बताती हैं। खास बात यह है कि हर प्रतिमा के नीचे उससे जुड़े इतिहास को लिखा भी गया है ताकि लोग इन प्रतिमाओं के जरिए भगवान शिव से जुड़े प्रसंगों को पढ़ सके। महाकाल कॉरिडोर के बीचो बीच कैलाश पर्वत को उठा है रावण की करीब 15 फीट ऊंची प्रतिमा सबका ध्यान खींचती है। इस प्रतिमा के जरिए दिखाया गया है कि भले ही रावण अष्ट भुजाओं के साथ सर्व  शक्तिशाली था लेकिन किस तरह भगवान शिव ने महेश अपने अंगूठे के बल से उसे रसातल में पहुंचा दिया था। 





इसके थोड़ी ही दूर जाने पर भगवान शिव के जीवन से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग समुद्र मंथन को दिखाया गया है. समुद्र मंथन के दौरान जिस तरह से देवताओं और असुरों में अमृत को लेकर खींचतान हो रही थी इस प्रतिमा के जरिए उसे दिखाया गया है. समुद्र मंथन के दौरान ही भगवान शिव ने विष का प्याला पिया था और वह नीलकंठ कहलाए थे। शिव से जुड़े इसी प्रसंग को इन बेहद खूबसूरत प्रतिमाओं के साथ महाकाल कॉरिडोर पर प्रदर्शित किया गया है।
विष का प्याला

महाकाल कॉरिडोर में जहां एक तरफ पत्थरों का बेहतरीन इस्तेमाल है तो वहीं दूसरी ओर यहां 40000 से ज्यादा पेड़ पौधों को लगाकर आने वाले समय में एक ग्रीन कॉरिडोर के रूप में भी विकसित किए जाने की योजना है। खास बात यह है कि यहां लगाए गए पेड़ पौधों में से सिर्फ उन्हीं प्रजातियों को चुना गया है जो भगवान शिव को बेहद प्रिय हैं या फिर उनकी पूजा में जिनकी पत्तियों का इस्तेमाल होता है। महाकाल कॉरिडोर में जो पेड़ पौधे लगाए गए हैं उनमें प्रमुख रूप से कैलाशपति, शमी, रुद्राक्ष, सप्तपर्णी, गूलर, वटवृक्ष और पीपल शामिल हैं।


इस तरह से पुरे महाकाल कॉरिडोर में 108 स्तंभ है  जो नंदी द्वार से लेकर महाकाल मंदिर द्वार तक बनाए गए हैं जिन पर 108 कलाकृतियां बनाई गई है।जो अपने आप में भव्य  रूप में दिखाई देता है और यह सब कलाकृतियां भगवान  शिव से जुडी कहानियो को दिखाया गया है इस कॉरिडोर में रात का नजारा अलग ही अंदाज में दिखाई  देता है


मंदिर के आरती और पूजा  का समय 

महाकालेश्वर मंदिर के अंदर गर्भगृह में पुरे दिन में 3  बार  प्रातकाल,  मध्यकाल और संध्यकाल   के समय भगवान महादेव के शिवलिंग की पूजा होती है जिसमे मंदिर के पुजारियों द्वारा भस्म आरती की जाती है उसके बाद शृंगार किया जाता है। तब जाकर भक्तो को दर्शन करने  के लिए अनुमति दी जाती है। भस्म आरती और शृंगार आरती के समय भी भक्त महाकलेश्वर शिवलिंग के दर्शन करते है। भक्तो को प्रवेश और मंदिर में दर्शन के लिए अलग अलग प्रवेश द्वार के माध्यमों से अंदर दर्शन के लिए भेजा जाता है जिसमे भक्तो को एक विशेष प्रवेश(VIP) द्वार से भेजा जाता है  तो दूसरी ओर सामान्य भक्तो को दूसरे सामान्य प्रवेश द्वार के द्वारा प्रवेश कराया जाता है यहाँ विशेष प्रवेश द्वारा वह द्वार है जिसमे भक्त टिकट के माध्यम से प्रवेश करते है इनमे कई सारे प्रवेश द्वार है तो वही सामान्य लोगो के लिए भी एक मुख्य द्वार है जिसकी लाइन 4  से 5  है:- 

1. मंदिर में भस्म आरती व् दर्शन 

मंदिर में  भस्म आरती और भक्तो के लिए दर्शन  दिन में 3 बार होती है जिसमे मंदिर के पुजारियों द्वारा चिता की राख द्वारा शिवलिंग की आरती की जाती है और इसके साथ ही गाय के गोबर के उफ्लो को जलाकर राख से भी भस्म आरती की जाती है इस भस्म आरती में  भक्त  बड़ी संख्या में भस्म आरती के दर्शन करते है लेकिन इसके लिए भक्तो को ऑनलाइन व मंदिर के काउंटर  से ऑफलाइन द्वारा टिकट लेना होता है जिसकी टिकट Rs. 200 रूपये/-  ऑनलाइन और Rs. 100  रूपये/- ऑफलाइन है :-

भस्म आरती 


 1. प्रातकाल समय  ( प्रातः 4:00 बजे से प्रातः 6:00 बजे तक ):-
यह  सबसे पहले प्रातकाल होने वाली  प्रसिद्ध और ज्यादा मांग वाली भस्म आरती है। 

2. मध्याना  समय  ( प्रातः 10:30 बजे से प्रातः 11:00 बजे तक ):-
यह दूसरी भस्म आरती का समय है जो कि  आरती का एक छोटा संस्करण है जो दिन के मध्य में होती है।


3.  संध्या आरती समय  (शाम 7:00 बजे से शाम 7:30 बजे तक) :-
यह भस्म आरती तीसरी और अंतिम है जो कि  संध्या आरती होती है यहाँ शाम की भस्म आरती भक्तों को अनुष्ठान में भाग लेने का एक और अवसर प्रदान करती है इसका समय सूर्यास्त के समय के साथ बदलता रहता है

2. मंदिर में श्रृंगार आरती व् दर्शन 

मंदिर में भस्म आरती के बाद शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है जिसमे महादेव के अलग अलग रूप में श्रंगार किया जाता है :-
श्रृंगार पूजा 


1. सुबह समय 6:00 से 7:00 तक 
सुबह की भस्म आरती के बाद सुबह 06 से 07 बजे तक शृंगार आरती होती है इसमें भक्तो को दूर से ही दर्शन कराया जाता है 

2. मध्य 11:00 से 12:00  तक 
इसमें 11 बजे से 12 बजे तक शृंगार आरती होती है. इसको भी दूर से ही दर्शन किया जाता है 

3. रात्रि 8:00  से 9:00  तक 
भस्म आरती के बाद इस समय भी शिवलिंग की श्रंगार होता है और उसके  बाद फिर आरती की जाती है

यह सब आप ऑनलाइन व् मंदिर के बाहर लगे टीवी के द्वारा भी दर्शन कर सकते है 


3. पूजा व् दर्शन 



भक्तों द्वारा दर्शन व पूजा



भगवान् महाकलेश्वर के भस्म आरती और श्रृंगार आरती के बाद भक्तो को पूजा व् दर्शन करने के लिए प्रवेश दिया जाता है जो अलग अलग लाइनों द्वारा होता है:- 

1. मंदिर में प्रवेश व् पूजा दर्शन के लिए के भक्तो को सुबह 4:00 से रात 11:00 बजे तक प्रवेश करने की अनुमति होती है। रात 11 बजे मंदिर के कपाट  बंद हो  जाते है 

2. जिस समय मंदिर में पूजा, भस्म आरती और  श्रृंगार आरती होती  है उस समय भक्तो को दूर से ही दर्शन करने  की अनुमति होती है  

3. मंदिर में रूपये 100 से लेकर 15000/-  तक की दक्षिणा में पूजा की जाती है जो की अलग अलग है नजदीक से दर्शन करने के लिए भक्तो को 250/-  का VIP टिकट  लेनी होती है 

4. गर्भगृह में पूजा के लिए भक्त सुबह 6 से 9 बजे तक और शाम को 6 से 8 के बीच  1500/- रुपए की रसीद कटवा कर गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं 
सामान्य लोगों का  प्रवेश द्वार


निकास द्वार



मौसम व त्योहार  के अनुसार यह समय में परिवर्तन भी होता रहता है।  
अगर आपको सटीक पूजा व दर्शन की सटीक जानकारी लेनी है तो मंदिर की ऑफिसियल वेबसाइट पर जाकर ही देखे। 

महाकालेश्वर मंदिर के कुछ महत्वपूर्ण व खास बातें:- 

1. यह मंदिर 12  ज्योतिर्लिंंगो में से तीसरा है जिसका मुख दक्षिण दिशा की ओर है 
2. महाकालेश्वर मंदिर को उज्जैन का राजा कहा है।  
3. महाकालेश्वर मंदिर और महाकालेश्वर महाराज  के कारण उज्जैन को महाकालेश्वर की नगरी कहा जाता है।
4. यही एक ऐसा मंदिर है जिसकी भस्म आरती की जाती है।
5. ऋषि-मुनि  मानते  हैं कि उज्जैन शून्य रेखांश पर स्थित है। 
6. उज्जैन ही वह शहर है, जहां कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को काटती है।
7. कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग ही संपूर्ण पृथ्वी का केंद्र बिंदु है और संपूर्ण पृथ्वी के राजा भगवान महाकाल यहीं से पृथ्वी का भरण-पोषण करते हैं।
8. 12 ज्योतिर्लिंग में यही ज्योतिर्लिंग है जिसमे शिवलिंग की भस्म आरती के साथ ही श्रृंगार आरती होती है जो अलग अलग रूपों में की जाती है।
9.  इस मंदिर के अनेक  प्रवेश द्वार है जिनमे कुछ VIP लोगो के लिए होता है तो कुछ सामान्य लोगो के लिए है।
10. VIP लोगों को अलग सिर्फ धोती कुर्ते में ही प्रवेश दिया जाता है 
11. इस मंदिर में महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर और नागचंद्रेश्वर के लिंग स्थापित हैं।
12. इस मंदिर में उज्जैन कॉरिडोर भी है जो भगवान शिव से जुडी कहानिया को प्रदर्शित किया गया है


यहाँ के लिए यातायात के साधन 

उज्जैन में आप अपने साधन से सड़क के मार्ग द्वारा या रेल के माद्यम से और हवाई मार्ग  माध्यम से उज्जैन में आ जा सकते है:-

1. सड़क मार्ग



नियमित बस सेवाएं उज्जैन को इंदौर, भोपाल, रतलाम, ग्वालियर, मांडू, धार, कोटा और ओंकारेश्वर आदि से जोड़ती हैं। अच्छी सड़कें उज्जैन को अहमदाबाद (402 किलोमीटर), भोपाल (183 किलोमीटर), मुंबई (655 किलोमीटर), दिल्ली से जोड़ती हैं। (774 किलोमीटर), ग्वालियर (451 किलोमीटर), इंदौर (53 किलोमीटर) और खजुराहो (570 किलोमीटर) आदि।

2.भारतीय रेल के माध्यम से --ट्रेन द्वारा



आप यहाँ भारतीय रेल के माध्यम से भी भारत के किसी भी हिस्से से आ सकते हो। उज्जैन पश्चिम रेलवे जोन का एक रेलवे स्टेशन है। यहाँ का UJN कोड है । यहाँ से कई बड़े शहरों के लिए ट्रेन उपलब्ध हैं।

3. वायुमार्ग



आप यहाँ देश और विदेश से हवाई मार्ग के माध्यम से भी उज्जैन आ सकते हो यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा इंदौर (53 किमी)। यहाँ से दिल्ली, मुंबई, पुणे, जयपुर, हैदराबाद और भोपाल की नियमित उड़ानें हैं।


यहाँ के लिए ठहरने की व्यवस्था



आप जब भी महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन व उज्जैन कॉरिडोर के लिए आते हो तो आप यहाँ ऑनलाइन व् यहाँ आकर भी होटल को बुक कर सकते है जिसमे आप आसानी से एक हफ्ते या कम दिन के लिए अपन बजट  के अनुसार होटल में कमरा ले सकते हो. -

1.उज्जैन शहर में आपको कई ऐसे होटल मिलेंगे जिसमे आप 3-4 दिन के लिए आराम से ठहर सकते हो।
2.उज्जैन आपको कई ऐसे सरकारी और निजी होटल मिल जायेंगे जिसमे आप घर  से भी ऑनलाइन बुक कर सकते हो और यहाँ आकर निजी होटल को भी सीधे तौर पर बुक सकते हो।   

उज्जैन शहर के अन्य मंदिर व् स्थल 

उज्जैन शहर में उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर व् कॉरिडोर से अलग मंदिर जिसमे आप दर्शन करने के लिए या घूमने  के लिए जा सकते हो:-

1. भारत माता मंदिर 


भारत माता मंदिर उज्जैन मंदिर के कॉरिडोर में ही है यहाँ पुरे भारत को एक माता मंदिर के रूप में प्रदर्शित किया गया है।  यहाँ पर हर रोज सुबह शाम को पूजा होती है

2. बड़ा गणेश मंदिर


महाकाल के मंदिर के पास ही एक और प्रसिद्ध मंदिर जिसको हम बड़ा गणेश मंदिर के नाम से बोला जाता है इस मंदिर में भगवान् गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित है और यह पुरे उज्जैन में एक ही मंदिर है यह मंदिर भी हज़ारो वर्षो पुराना  मंदिर है।
3.विक्रमादित्य टीला 
विक्रमादित्य का टीला  उज्जैन महाकलेश्वर मंदिर के पीछे घाट पर बना हुआ है जो उज्जैन के राजा कहे जाते थे इन्होने उज्जैन का काफी जीर्णोद्धार किया है। इस विक्रमादित्य टीले के अंदर राजा विक्रमादित्य से जुड़े सभी कहानियो व विक्रम बेतेल कहानियों को प्रदर्शित किया गया है। वहां पर लिखे लेख के अनुसार - "संस्कृति पुरूष, उज्जयिनी - नरेश विक्रमादित्य के दानवीर, न्यायशील एवं तेजस्वी व्यक्तित्व की कीर्ति-कथाएं शताब्दियों से जनमानस में प्रतिष्ठित हैं. जनश्रुतियों के अनुसार शकों पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में विक्रमादित्य ने 57 ईसा पूर्व "विक्रम संवत का आरम्भ किया. विक्रमादित्य की सभा उच्चकोटि के विद्यानों से सुशोभित थी जो नवरत्नल के नाम से विख्यात हुए हैं"

4.  हरसिद्धि मंदिर


इस मंदिर का भी पौराणिक इतिहास  माना जाता है इस मंदिर में देवी सरस्वती और महालक्ष्मी के बीच माता अन्नपूर्णा विराजमान है श्रुति के अनुसार यह उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी थी यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है
। इस मंदिर का पुननिर्माण श्रेय मराठो को है. 

5.  राम जनार्दन मंदिर


यह मंदिर काफी पुराना है इस मंदिर का निर्माण जयपुर के राजा जयसिंह ने सहत्रवी शताब्दी  में निर्माण करवाया था। इस  राम-मंदिर में भगवन राम , लक्ष्मण और सीता और जनार्दन-मंदिर में जनार्दन-विष्णु की रचना है। अठारहवीं शताब्दी में मराठा काल में बाद में चारदीवारी और टैंक को जोड़ा गया था। दोनों मंदिरों की दीवारों पर मराठा चित्रों के सुंदर उदाहरण देखने को मिलते हैं। जनार्दन मंदिर के सामने दोनों मंदिरों के साथ-साथ तालाब के पास कुछ पुराने चित्र स्थापित देखे गए हैं जो मूर्तिकला की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। तालाब के पास गोवर्धनधारी कृष्ण की छवि ग्यारहवीं शताब्दी की है।

6.  इस्कॉन मंदिर


यह मंदिर देश की आज़ादी के बाद बनाया  हुआ है. इस मंदिर का निर्माण इस्कॉन समिति द्वारा बनाया गया है। इस्कॉन (द इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ कृष्णा कॉन्शसनेस) मंदिर, उज्जैन भगवान कृष्ण का एक लोकप्रिय मंदिर है।

7. कालियादेह पैलेस

यह कालियादेह पैलेस शिप्रा नदी के किनारे है. इसको मुस्लिम के आने से पहले ब्रह्मकुंड के नाम से बोला जाता था। मालवा का खिलजी सुल्तान नासिर शाह ने लगभग 1500  ई. में यहाँ एक भवन निर्माण करवाया, जो ग्रीष्म ॠतु में शीतलता प्रदान कर सके। यह भवन वास्तुकला के माण्डु शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें नदी की पानी को कई हौजों में भरकर 20  फीट कह ऊँचाई से उत्कीर्ण पत्थरों पर पतली धाराओं के रूप में गिराने का प्रबंध किया गया था। इससे नदी के ऊपर बना चबूतरा शीतल रहता था। 

8. वैधशाला


उज्जैन में 18वी शताब्दी में निर्मित एक जंतर मंतर  भी है जिस  वेधशाला का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई  जयसिंह ने 1719 में किया था जब वे दिल्ली के राजा मुहम्मद शाह के शासनकाल में मालवा के राज्यपाल के रूप में उज्जैन में थे। उज्जैन ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में काफी महत्व का स्थान प्राप्त किया है, सूर्य सिद्धान्त और पंच सिद्धान्त जैसे महान कार्य उज्जैन में लिखे गए हैं। भारतीय खगोलविदों के अनुसार, कर्क रेखा को उज्जैन से गुजरना चाहिए, यह हिंदू भूगोलवेत्ताओं के देशांतर का पहला मध्याह्न काल भी है। लगभग चौथी शताब्दी ई.पू. उज्जैन ने भारत के ग्रीनविच होने का गौरव प्राप्त किया।

9.  चौबीस खम्बा


यह  नगर का अतिप्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर चौबीस खंभा हैं. यहां महालाया और महामाया दो देवियों की प्रतिमाएं द्वार के दोनों किनारों पर स्थापित है  पूर्व के समय मे यह द्वार श्री महाकालेश्वर मंदिर जाने का मुख्य प्रवेश द्वार रहा होगा. जो कि उत्तर दिशा की और बना हुआ है इस द्वार में कुल 24 खंभे लगे हुए हैं इसीलिए इस क्षेत्र को 24 खंभा माता मंदिर कहा जाता है 

10. काल भैरव मंदिर




उज्जैन का काल भैरव मंदिर आठ भैरवों की पूजा, साईवती परंपरा का एक हिस्सा है और  माना जाता है कि यह राजा भद्रसेन द्वारा शिप्रा के तट पर बनाया गया था। स्कंद पुराण के अवंति खंड में एक काल भैरव मंदिर का उल्लेख है। माना जाता है कि काल भैरव की पूजा कपालिका और अघोरा संप्रदाय का हिस्सा रही है। उज्जैन इन दोनों संप्रदायों का एक प्रमुख केंद्र था। आज भी, काल भैरव को अनुष्ठान के एक भाग के रूप में शराब की पेशकश की जाती है मालवा शैली में सुंदर चित्र एक बार मंदिर की दीवारों को सजाते हैं, जिनमें से केवल निशान दिखाई देते हैं।

11. गोपाल मंदिर


इस मंदिर को  उज्जैन नगर का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता  है। यह मंदिर नगर के मध्य 
व्यस्ततम क्षेत्र में स्थित है। मंदिर का निर्माण महाराजा दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजा बाई ने वर्ष 1833 के आसपास कराया था। मंदिर में कृष्ण (गोपाल) प्रतिमा है। मंदिर के चांदी के द्वार यहां का एक अन्य आकर्षण हैं।

12. सांदीपनि आश्रम


प्राचीन उज्जैन अपने राजनीतिक और धार्मिक महत्व के अलावा, महाभारत काल की शुरुआत में शिक्षा का प्रतिष्ठित केंद्र था | भगवान श्री कृष्ण और सुदामा ने गुरु सांदीपनि के आश्रम में नियमित रूप से शिक्षा प्राप्त की थी। महर्षि सांदीपनि का आश्रम मंगलनाथ रोड पर स्थित हे |

आश्रम के पास के क्षेत्र को अंकपात के नाम से जाना जाता है, माना जाता है कि यह स्थान भगवान कृष्ण द्वारा अपनी लेखनी को धोने के लिए इस्तेमाल किया गया था। माना जाता है कि एक पत्थर पर पाए गए अंक 1 से 100 तक गुरु सांदीपनि द्वारा उकेरे गए थे। पुराणों में उल्लिखित गोमती कुंड पुराने दिनों में आश्रम में पानी की आपूर्ति का स्रोत था।नंदी की एक छवि तालाब के पास शुंग काल के समय की है। वल्लभ संप्रदाय के अनुयायी इस स्थान को वल्लभाचार्य की 84 सीटों में से 73 वीं सीट के रूप में मानते हैं जहां उन्होंने पूरे भारत में अपने प्रवचन दिए।

13. मंगलनाथ मंदिर

यह मंदिर काल भैरव मंदिर से थोड़ी  दूर शिप्रा नदी पर  स्थित है. इस मंदिर को मत्स्य पुराण के अनुसार मंगल का जन्म स्थान  माना जाता है। इस मंदिर को प्राचीन काल से अब तक मंगल के पूजा दर्शन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस मंदिर का आज  भी काफी महत्त्व माना जाता है


14. गढ़कालिका मंदिर 


लोक परम्परा के अनुसार महाकवि कालिदास गढ़कालिका के अनन्य भक्त थे. इस मंदिर का जीर्णोद्धार 606 ई में सम्राट हर्ष द्वारा करवाया गया था
 इस प्राचीन मंदिर में गढ़कालिका देवी, हनुमान और भगवान् विष्णु की मूर्ति है 



15. स्थिरमन गणेश मंदिर


भगवान् श्री राम जब वनवास के समय अवंतिका आये थे तो उन्होंने स्वयं अपने हाथो से  स्थिर मन व शांति के लिए माता सीता के  कहने पर इस  मंदिर का निर्माण किया था। यहाँ पर दर्शन मात्र से मन को शांति व् स्थिरता  मिलता है और समस्त चिंताओं से मुक्ति मिलती है 

16शिप्रा नदी

 

उज्जैन की प्रमुख नदी कहे जाने वाली शिप्रा नदी है जो  उज्जैन महाकाल मंदिर से कुछ ही दुरी पर स्थित है यह इंदौर के उज्जैनी मुंडला गांव की ककड़ी बड़ली नामक स्थान से निकलती है।196KM बहने के बाद मंदसौर में चंबल मे मिल जाती है। खान नदी ओर गम्भीर इसकी सहायक नदी है। उज्जैन नगर के धार्मिक स्वरूप में क्षिप्रा नदी के घाटों का प्रमुख स्थान है। नदी के दाहिने किनारे, जहाँ नगर स्थित है, पर बने ये घाट स्थानार्थियों के लिये सीढ़ीबध्द हैं। घाटों पर विभिन्न देवी-देवताओं के नये-पुराने मंदिर भी है। क्षिप्रा के इन घाटों का गौरव सिंहस्थ के दौरान देखते ही बनता है, जब लाखों-करोड़ों श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं।

उज्जैन में 12 वर्ष के अंतराल पर महाकुम्भ का मेला लगता है जिसमे बड़ी संख्या में भक्त यहाँ स्नान करने के लिए दूर दूर से आते है.।


17. राम घात 

शिप्रा नदी पर ही रामघाट है। इसका राम घाट  नाम इसलिए पड़ा है क्योकि इस भगवान् श्री राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध यही पर किया था। तब से इस घाट का नाम राम घाट रखा गया।  


आशा करता हूँ कि आपको मेरी यहाँ दी गयी जानकारी अच्छी लगी होगी और आपके लिए काफी लाफदायक होगी। आप हमारी इस पर पोस्ट कमेंट करके जरूर बताये:- 

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उज्जैन कॉरिडोर के कुछ अन्य फोटो 


त्रि मूर्ति (भगवान् शिव, ब्रह्मः और विष्णु )
त्रि मूर्ति (भगवान् शिव, ब्रह्मः और विष्णु )


भगवान् शिव की बारात
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भगवान् शिव का अन्य रूप
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